राजा, किसान और नगर आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

राजा, किसान और नगर आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

(लगभग 600 ई.पू. से 600 ई.)

NCERT, Class-12 भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-1 पर आधारित पुस्‍तक के अध्‍याय-2 राजा, किसान और नगर आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ संबंधित महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों को देखनेवाले हैं । यहां पर केवल उन तथ्‍यों को लिया गया है जो किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए महत्‍वपूर्ण है। ज्‍यादा जानकारी के लिए आप NCERT की अधिकारिक वेवसाइट पर जाकर संपूर्ण पुस्‍तक को पढ़ सकते हैं।  

हड़प्पा सभ्यता के बाद 

हड़प्पा सभ्यता के बाद डेढ़ हज़ार वर्षों के लंबे अंतराल में उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कई प्रकार के विकास हुए जिसमें प्रमुख निम्‍न है

  • सिंधु नदी और इसकी उपनदियों के किनारे रहने वाले लोगों द्वारा ऋग्वेद का लेखन किया गया।
  • उत्तर भारत, दक्कन पठार क्षेत्र और कर्नाटक जैसे उपमहाद्वीप के कई क्षेत्रों में कृषक बस्तियाँ अस्तित्व में आईं। साथ ही दक्कन और दक्षिण भारत के क्षेत्रों में चरवाहा बस्तियों के प्रमाण भी मिलते हैं।
  • ईसा पूर्व पहली सहस्राब्दि के दौरान मध्य और दक्षिण भारत में शवों के अंतिम संस्कार के नए तरीके भी सामने आए, जिनमें महापाषाण के नाम से ख्यात पत्थरों के बड़े-बड़े ढाँचे मिले हैं। कई स्थानों पर शवों के साथ विभिन्न प्रकार के लोहे से बने उपकरण और हथियारों को भी दफ़नाने का प्रमाण मिला

आरंभिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई.पू. को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है क्‍योंकि

  • यह काल प्रायः आरंभिक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास से जुड़ा हुआ है।
  • इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ।
  • बौद्ध और जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का उल्लेख मिलता है जिनमें प्रमुख वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवन्ति हैं।

महाजनपद

  • अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था तथा इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था।
  • भगवान महावीर और भगवान बुद्ध इन्हीं गणों से संबंधित थे। वज्जि संघ की ही भाँति कुछ राज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर राजा गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे।
  • प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जिसे प्रायः किले से घेरा जाता था। किलेबंद राजधानियों के रख-रखाव और प्रारंभी सेनाओं और नौकरशाही के लिए भारी आर्थिक स्रोत की आवश्यकता होती थी।
  • लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व से संस्कृत में ब्राह्मणों ने धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों की रचना शुरू की जिसमें शासक सहित अन्य के लिए नियमों का निर्धारण किया गया और यह अपेक्षा की जाती थी कि शासक क्षत्रिय वर्ण से ही होंगे।
  • शासकों का काम किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना माना जाता था।
  • संपत्ति जुटाने का एक वैध उपाय पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकट्ठा करना भी माना जाता था।

मगध महाजनपद

छठी से चौथी शताब्दी ई.पू. में मगध (आधुनिक बिहार) सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया। आधुनिक इतिहासकार इसके कई कारण बताते हैं।

  • मगध क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी।
  • लोहे की खदानें (आधुनिक झारखंड) आसानी से उपलब्ध थीं जिससे उपकरण और हथियार बनाना सरल होता था।
  • जंगली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे जो सेना के एक महत्वपूर्ण अंग थे।
  • साथ ही गंगा और इसकी उपनदियों से आवागमन सस्ता व सुलभ होता था।

उल्‍लेखनीय है कि आरंभिक जैन और बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्ता का कारण विभिन्न शासकों की नीतियों को बताया है। इन लेखकों के अनुसार बिंबिसार, अजातसत्तु और महापद्मनंद जैसे प्रसिद्ध राजा अत्यंत महत्त्वाकांक्षी शासक थे, और इनके मंत्री उनकी नीतियाँ लागू करते थे।

  • प्रारंभ में, राजगाह (आधुनिक बिहार के राजगीर का प्राकृत नाम) मगध की राजधानी थी। राजगाह का अर्थ है राजाओं का घर’।
  • पहाड़ियों के बीच बसा राजगाह एक किलेबंद नगर था। बाद में चौथी शताब्दी ई.पू. में पाटलिपुत्र (पटना) को राजधानी बनाया गया ।

एक आरंभिक साम्राज्य

मगध के विकास के साथ-साथ मौर्य साम्राज्य का उदय हुआ। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 321 ई.पू.) का शासन पश्चिमोत्तर में अफ़गानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था। उनके पौत्र असोक ने जिन्हें आरंभिक भारत का सर्वप्रसिद्ध शासक माना जा सकता है, कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) पर विजय प्राप्त की।

मौर्यवंश के बारे में जानकारी देने वाले स्रोत

  • पुरातात्विक प्रमाण जैसे मूर्तिकला।
  • समकालीन रचनाएँ जैसे चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आए यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ की इंडिका जिसके कुछ अंश ही आज उपलब्ध हैं, कौटिल्‍य का अर्थशास्त्र इत्‍यादि।
  • परवर्ती जैन, बौद्ध और पौराणिक ग्रंथों
  • पत्थरों और स्तंभों पर मिले असोक के अभिलेख ।

साम्राज्य का प्रशासन

  • मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केंद्र थे जिनका उल्‍लेख असोक के अभिलेखों में किया गया है।
  • राजधानी पाटलिपुत्र (राजधानी)
  • 4 प्रांतीय केंद्र जिनमें तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि और सुवर्णगिरि शामिल है।

सैनिक व्‍यवस्‍था

मेगस्थनीज़ ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक समिति और छः उपसमितियों का उल्लेख किया है जिसका कार्य विवरण निम्‍न है

  • नौसेना का संचालन
  • यातायात और खान-पान का संचालन
  • पैदल सैनिकों का संचालन
  • अश्वारोहियों का संचालन
  • रथारोहियों का संचालन
  • हाथियों का संचालन

दूसरी उपसमिति का दायित्व विभिन्न प्रकार का था उपकरणों के ढोने के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था, सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना।

मौर्य साम्राज्य का महत्‍व

उन्नीसवीं सदी में जब इतिहासकारों ने भारत के आरंभिक इतिहास की रचना करनी शुरू की तो मौर्य साम्राज्य को इतिहास का एक प्रमुख काल माना गया। प्रस्तर मूर्तियों सहित मौर्यकालीन सभी पुरातत्व एक अद्भुत कला के प्रमाण थे जो साम्राज्य की पहचान माने जाते हैं।

भारतीय इतिहासकारों को प्राचीन भारत में एक ऐसे साम्राज्य की संभावना बहुत चुनौतीपूर्ण तथा उत्साहवर्धक लगी।

इतिहासकारों को लगा कि अभिलेखों पर लिखे संदेश अन्य शासकों के अभिलेखों से भिन्न हैं। इसमें उन्हें यह लगा कि अन्य राजाओं की अपेक्षा असोक एक बहुत शक्तिशाली और परिश्रमी शासक थे। साथ ही वे बाद के उन राजाओं की अपेक्षा विनीत भी थे जो अपने नाम के साथ बड़ी-बड़ी उपाधियाँ जोड़ते थे। इसलिए इसमें कोई आश्चर्यजनक बात नहीं थी कि बीसवीं सदी के राष्ट्रवादी नेताओं ने भी असोक को प्रेरणा का स्रोत माना।

दैविक राजा

राजाओं के लिए उच्च स्थिति प्राप्त करने का एक साधन विभिन्न देवी-देवताओं के साथ जुड़ना था।

  • मध्य एशिया से लेकर पश्चिमोत्तर भारत तक शासन करने वाले कुषाण शासकों ने इसका सबसे अच्छा उद्धरण प्रस्तुत किया। कुषाण इतिहास की रचना अभिलेखों और साहित्य परंपरा के माध्यम से की गई है। जिस प्रकार के राजधर्म को कुषाण शासकों ने प्रस्तुत करने की इच्छा की उसका सर्वोत्तम प्रमाण उनके सिक्कों और मूर्तियों से प्राप्त होता है।
  • उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास एक देवस्थान पर कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ लगाई गई थीं। अफ़गानिस्तान के एक देवस्थान पर भी इसी प्रकार की मूर्तियाँ मिली हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इन मूर्तियों के ज़रिए कुषाण स्वयं को देवतुल्य प्रस्तुत करना चाहते थे।
  • कई कुषाण शासकों ने अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि भी लगाई थी। संभवतः वे उन चीनी शासकों से प्रेरित हुए होंगे, जो स्वयं को स्वर्गपुत्र कहते थे।
  • इसी क्रम में गुप्त शासकों के कवियों द्वारा अपने राजा या स्वामी की प्रशंसा में लिखी प्रशस्तियाँ । इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति की रचना हरिषेण जो स्वयं गुप्त सम्राटों के संभवतः सबसे शक्तिशाली सम्राट समुद्रगुप्त के राजकवि थे, ने संस्कृत में की थी।

गुजरात की सुदर्शन झील

  • एक कृत्रिम जलाशय था जिसका उल्‍लेख शक शासक रुद्रदमन की उपलब्धियों का उल्लेख करने के लिए संस्कृत भाषा के एक पाषाण अभिलेख में है।
  • इस अभिलेख में कहा गया है कि इस झील का निर्माण मौर्य काल में एक स्थानीय राज्यपाल द्वारा किया गया था। लेकिन एक भीषण तूफान के कारण इसके क्षतिग्रस्‍त होने पर तत्कालीन शासक रुद्रदमन ने इस झील की मरम्मत करवाई।
  • इसी पाषाण-खंड पर एक और अभिलेख है जिसमें कहा गया है कि गुप्त वंश के एक शासक ने एक बार फिर इस झील की मरम्मत करवाई थी।

भूमिदान

  • भूमिदान अभिलेख देश के कई हिस्सों में प्राप्त हुए हैं। क्षेत्रों में दान में दी गई भूमि की माप में अंतर है: कहीं-कहीं छोटे-छोटे टुकड़े, तो कहीं कहीं बड़े-बड़े क्षेत्र दान में दिए गए हैं। साथ ही भूमिदान में दान प्राप्त करने वाले लोगों के अधिकारों में भी क्षेत्रीय परिवर्तन मिलते हैं।
  • संस्कृत धर्मशास्त्रों के अनुसार, महिलाओं को भूमि जैसी संपत्ति पर स्वतंत्र अधिकार नहीं था लेकिन एक अभिलेख से पता चलता है कि प्रभावती भूमि की स्वामी थी और उसने दान भी किया था।
  • प्रभावती गुप्त आरंभिक भारत के एक सबसे महत्वपूर्ण शासक चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी जिसका विवाह दक्कन पठार के वाकाटक परिवार में हुआ था।

विभिन्‍न इतिहासकारों के अनुसार भूमिदान का उद्देश्‍य/प्रभाव क्‍या था

  • कुछ के अनुसार भूमिदान शासक वंश द्वारा कृषि को नए क्षेत्रों में प्रोत्साहित करने की एक रणनीति थी।
  • कुछ का मानना है कि भूमिदान से दुर्बल होते राजनीतिक प्रभुत्व का संकेत मिलता है अर्थात् राजा का शासन सामंतों पर दुर्बल होने लगा तो उन्होंने भूमिदान के माध्यम से अपने समर्थक जुटाने प्रारंभ कर दिए।
  • उनका यह भी मानना है कि राजा स्वयं को उत्कृष्ट स्तर के मानव के रूप में प्रदर्शित करना चाहते थे उनका नियंत्रण ढीला होता जा रहा था इसलिए वे अपनी शक्ति का आडंबर प्रस्तुत करना चाहते थे।

भूमिदान के प्रचलन से किनके बीच के संबंधों की जानकारी मिलती है?

उत्‍तर- राज्य तथा किसानों के बीच संबंध

छठी शताब्दी ई.पू. के आस पास अग्रहार किस भूभाग को कहते थे ?

उत्‍तर- वह भूभाग जो ब्राह्मणों को दान किया जाता था। उल्‍लेखनीय है कि ब्राह्मणों से भूमिकर या अन्य प्रकार के कर नहीं वसूले जाते थे तथा ब्राह्मणों को स्वयं स्थानीय लोगों से कर वसूलने का अधिकार था।

लगभग छठी शताब्दी ई.पू. में उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में नगरों का विकास हुआ। अधिकांश नगर महाजनपदों की राजधानियाँ थे तथा प्रायः सभी नगर संचार मार्गों के किनारे बसे थे।

  • पाटलिपुत्र-नदीमार्ग के किनारे बसा नगर
  • उज्जयिनी – प्रमुख भूमार्गों के किनारे बसा नगर
  • पुहार – समुद्रतट पर बसा नगर।
  • मथुरा – व्यावसायिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्‍द्र।

प्राचीन भारत में उत्पादकों और व्यापारियों के संघ का उल्लेख मिलता है जिसे क्‍या कहा गया है?

उत्‍तर- श्रेणी

एक यूनानी समुद्र यात्री द्वारा रचित ‘पेरिप्लस ऑफ़ एरीथ्रियन सी’ में एरीथ्रियन का क्‍या अर्थ है?

उत्‍तर- एरीथ्रियन यूनानी भाषा में लाल सागर को कहते है जबकि पेरिप्लस यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ समुद्री यात्रा है।

शासकों की प्रतिमा और नाम के साथ सबसे पहले सिक्के किन शासकों ने जारी किया?

उत्‍तर हिंद-यूनानी शासकों ने

सोने के सिक्के बड़े पैमाने पर प्रथम शताब्दी ईसवी में किसके द्वारा जारी किए गए?

उत्‍तर-कुषाण राजाओं द्वारा

आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त लगभग सभी लिपियों का मूल क्‍या है?

उत्‍तर ब्राह्मी लिपि

जेम्स प्रिंसेप ने असोककालीन ब्राह्मी लिपि का को पढ़ने में कब सफलता पाई?

उत्‍तर-1838 ई.

  • अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत में हैं प्राकृत के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे
  • पश्चिमोत्तर से मिले अभिलेख अरामेइक और यूनानी भाषा में हैं। पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी में लिखे गए थे। अरामेइक और यूनानी लिपियों का प्रयोग अफगानिस्तान में मिले अभिलेखों में किया गया था।
  • अशोक के अभिलेख आधुनिक उड़ीसा से प्राप्त हुए हैं लेकिन उनकी वेदना को परिलक्षित करने वाला अभिलेख वहाँ नहीं मिला है अर्थात् यह अभिलेख उस क्षेत्र में नहीं उपलब्ध है जिस पर विजय प्राप्त की गई थी।

1886 में दक्षिण भारत के अभिलेखों के शोधपत्र का प्रथम अंक किस नाम से प्रकाशित हुआ ?

एपिग्राफ़िआ कर्नाटिका

अभिलेख

अभिलेख उन्हें कहते हैं जो पत्थर, धातु या मिट्टी के बर्तन जैसी कठोर सतह पर खुदे होते हैं। अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियाँ, दिया गया दान, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं जो उन्हें बनवाते हैं। प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं में लिखे जाते थे। प्राकृत उन भाषाओं को कहा जाता था जो जनसामान्य की भाषाएँ होती थीं।

ऐसा भूखंड है जहाँ कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता है अथवा बस जाता है। क्‍या कहलाता है?

उत्‍तर – जनपद

वह शासन व्‍यवस्‍था जहाँ सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती है क्‍या कहलाती है?

ओलीगार्की या समूहशासन

ईस्ट इंडिया कंपनी के किस अधिकारी ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला जिसका उपयोग सबसे आरंभिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है?

उत्‍तर- जेम्स प्रिंसेप

अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी, यानी मनोहर मुखाकृति वाले राजा का नाम किस शासन के संदर्भ में है ?

उत्‍तर – अशोक

  • अशोक बौद्ध ग्रंथों के अनुसार असोक सर्वाधिक प्रसिद्ध शासकों में से एक था।
  • अशोक पहला सम्राट था जिसने अपने अधिकारियों और प्रजा के लिए संदेश प्राकृतिक पत्थरों और पॉलिश किए हुए स्तंभों पर लिखवाए थे।
  • असोक ने अपने साम्राज्य को अखंड बनाए रखने का प्रयास धम्म के प्रचार द्वारा भी किया। अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से धम्म का प्रचार किया।
  • धम्म के सिद्धांत बहुत ही साधारण और सार्वभौमिक थे। धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्त नाम से विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई।

जातक कथाएँ पहली सहस्राब्दि ई. के मध्य में किस भाषा में लिखी गई?

उत्‍तर- पालि

संस्कृत भाषा में दूसरी शताब्दी ई.पू. और दूसरी शताब्दी ई. के बीच लिखा गया आरंभिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधिग्रंथ कौन सा है?

उत्‍तर-  मनुस्मृति

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