वर्तमान समय में पृथ्वी जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं, बाढ़, सूखा, अनियंत्रित आग, कोविड-19 महामारी जैसे घटनाओं के कारण संकट से गुज़र रही है तथा इन सभी समस्याओं से निपटने हेतु ग्लासगो में COP26 सम्मेलन का आयोजना किया गया । इस सम्मेलन के माध्यम से पुनः जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौती के समाधान हेतु विश्व के सभी देश एक मंच पर आए और समस्या के समाधान हेतु उपायों की घोषणा की गयी।
COP26 एवं भारत की भूमिका |
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जलवायु परिवर्तन एवं भारत- COP26
स्कॉटलैंड, ग्लासगो में हुई COP 26 की बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जलवायु प्रतिबद्धताओं के प्रति ‘पंचामृत’ की घोषणा की जिसमें वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन (Net-Zero Carbon Emission) तक पहुँचने की प्रतिबद्धता भी शामिल है। उल्लेखनीय हैै कि शुद्ध शून्य उत्सर्जन का अर्थ उत्पादित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वातावरण से निकाले गए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बीच एक समग्र संतुलन प्राप्त करने से है।
जलवायु प्रतिबद्धताओं के प्रति भारत का पंचामृत |
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1 | भारत की गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता को 2030 तक 500 गीगावाट करना । |
2 | 2030 तक भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरा करना। |
3 | भारत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कमी लाना। |
4 | वर्ष 2030 तक कार्बन तीव्रता में 45% की कटौती। |
5 | वर्ष 2070 तक भारत कार्बन न्यूट्रल बन जाएगा और शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल कर लेगा। |
उल्लेखनीय है ग्लोबल वार्मिंग के हेतु उत्तरदायी संचयी उत्सर्जन में भारत का योगदान समृद्ध राष्ट्रों जैसे अमेरिका, चीन, रूस, जर्मनी, यूके और जापान की तुलना में बहुत छोटा है तथा भारत का संचयी उत्सर्जन विश्व के कुल उत्सर्जन का केवल 4.4% है फिर भी एक स्वैच्छिक दायित्व बोध के दृष्टिकोण से भारत द्वारा शुद्ध-शून्य लक्ष्य की घोषणा करना एक बड़ा कदम है।
COP26 के प्रस्ताव एवं भारत का पक्ष
2030 तक जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को अद्यतन कर उसकी रूपरेखा प्रस्तुत करना
- इस प्रस्ताव पर भारत चीन के साथ अन्य देशों ने अपने बढ़े हुए कार्बन कटौती लक्ष्यों की घोषणा की। भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा पांच नए लक्ष्यों की घोषणा की गयी जिसे ‘पंचामृत’ की संज्ञा दी गयी ।
कार्बन तटस्थ के लक्ष्य की घोषणा
- इस प्रस्ताव में सभी देशों से अपेक्षा की गयी कि वे कार्बन तटस्थता संबंधी समय सीमा की घोषणा करें।
- अमेरिका, कनाडा तथा यूरोपीय संघ द्वारा 2050 तक जबकि चीन द्वारा 2060 तक कार्बन तटस्थता के लक्ष्य की घोषणा की गयी जबिक भारत ने ‘पंचामृत’ घोषणा के तहत वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन (Net-Zero Carbon Emission) तक पहुँचने की घोषणा की ।
विकासशील देशों हेतु वित्तीय संसाधन
- जलवायु परिवर्तन का सामान करने के क्रम में गरीब एवं विकासशील देशों को वित्तीय साधन उपलब्ध कराए जाने की आवश्यकता है। उल्लेखनीय है कि पेरिस समझौते के तहत सहमति बनी कि जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु विकसित देशों द्वारा वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर की राशि उपलब्ध करायी जाएगी लेकिन 2020 तक इस फंड में केवल 10% राशि ही उपलब्ध कराया जा सका है।
- हांलाकि इस सम्मेलन में पुन: इस पर चर्चा हुई और विकसित देशों ने 2025 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन डॉलर सहायता राशि देने पर अपनी सहमति जतायी।
कोयला उपयोग को कम करना
- इस प्रस्ताव के तहत कोयले के प्रयोग को समाप्त करने की बात कही गयी थी लेकिन भारत सहित अन्य देशों के दबाव के कारण कोयले के उपयोग में कमी करने पर सहमति बनी।
- उल्लेखनीय है कि विकसित देश ऊर्जा हेतु गैसे तथा अन्य स्रोतों के प्रयोग पर निर्भर है तथा वे चाहते थे कि कोयले के प्रयोग को एकदम समाप्त किया जाए लेकिन भारत और चीन जैसे देश अभी भी अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के एक बड़े भाग हेतु कोयले पर निर्भर है। अतः इस पर सहमति बनी कि इसके प्रयोग कम करने की दिशा में कार्य किए जाएंगे।
मीथेन गैस की कटौती हेतु ग्लोबल मीथेन शपथ
- इस प्रस्ताव के तहत 2020 के स्तर की तुलना में 2030 तक मीथेन गैस के उत्सर्जन में 30% की कटौती का लक्ष्य रखा गया जिस पर कुल 90 देशों ने अपनी सहमति व्यक्त की । उल्लेखनीय है कि वैश्विक तापमान को बढ़ाने में मिथेन का ज्यादा योगदान है और यह कृषि, पशुपालन, कचरा, ईधन के जलने आदि से उत्पन्न होता है।
- चीन के अलावा भारत ने इस कार्यक्रम में भाग नहीं लिया जिसके पीछे प्रमुख कारण यह रहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि, पशुपालन तथा ग्रामीण क्रियाकलापों का विशेष योगदान है इसके अलावा भारत ने ग्रामीण क्षेत्रों में मीथेन गैस उत्पादन हेतु बायोगैस कार्यक्रम चलाया है। अतः भारत इस लक्ष्य में कोई विशेष कटौती करने में असमर्थ है।
ग्लोबल मीथेन शपथयूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में UNFCCC के COP-26 से पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने ग्लोबल मीथेन प्लेज (Global Methane Pledge) की घोषणा की जो इस दशक के अंत तक मीथेन उत्सर्जन में एक तिहाई की कटौती करने हेतु संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपियन संघ के नेतृत्त्व वाला प्रयास है। उल्लेखनीय है कि मिथेन ग्लोबल वार्मिंग क्षमता मामले में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में लगभग 85 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। मीथेन उत्सर्जन में कमी हेतु भारत द्वारा पहल
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वनों के विनाश तथा भूमि उपयोग पर ग्लासगो नेताओं की घोषणा
इस घोषणा प्रस्ताव के तहत मुख्य लक्ष्य व्यापक स्तर पर वनों के कटाव को रोकना तथा वनों पर मूल निवासियों के अधिकारों से सुनिशचित करना था। इस प्रस्ताव में भाग लेने पर जहां चीन सहित 30 देशों ने अपनी सहमति जतायी वहीं भारत द्वारा निम्न दो कारणों से इस कार्यक्रम में भाग नहीं लिया गया।
- भारत औद्योगिक एवं व्यवसायिक प्रयोग हेतु वनों का विकास का कार्यक्रम बनाना चाहता है
- भारत के अनुसार औद्योगिक एवं व्यावसायिक गतिविधियों पर इस प्रकार का रोक विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुकूल नहीं है।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि कई मायनों में COP26 सम्मेलन सफल रहा जिसमें जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने हेतु अनेक निर्णय लिए गए तथा भारत ने दृढ़ता के साथ अपनी बात रखी और न केवल नैतिक उत्तरदायित्व को समझते हुए अपने लक्ष्यों की घोषणा की बल्कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव संबंधी विकासशील एवं गरीब देशों के साथ द्वीपीय देशों की चिंताओं को भी संबोधित किया।
ग्लासगो जलवायु सम्मेलन की उपलब्धियां
चीन और अमरिका के बीच जलवायु सहयोग समझौता
- चीन और अमेरिका का ग्रीन हाऊस गैसो के उत्सर्जन में 40% का योगदान है और दोनों देशों ने निर्णय लिया है कि जलवायु परिवर्तन की रोकथाम हेतु एक कार्यदल बनाया जाएगा।
ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट
- ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट वास्तव में जीवाश्म ईंधन और कोयले के इस्तेमाल को कम करने संबंधी योजना बनाने वाला पहला जलवायु समझौता है जिसमें कार्बन उत्सर्जन में कटौती और विकासशील देशों हेतु ज़्यादा मदद का वादा किया गया जिससे कि ग़रीब देशों को जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों के अनुकूल बनाने में सहायता मिल सके।
वनों के अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाने संबंधी प्रस्ताव
- इस सम्मेलन में 105 देशों ने वनों के अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाने के लिए एक सहमति पर हस्ताक्षर किए। हालांकि वन कटाई को लेकर हुए समझौते हेतु वित्त जुटाना एक समस्या है।
जलवायु न्याय की धारणा
- जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए भारत ने विकासशील एवं गरीब देशों के पक्ष को व्यापक रूप से रखते हेतु जलवायु न्याय की धारणा को दोहराया जिसके तहत गरीब एवं विकासशील देशों के हित में विशेष कार्यवाही की बात कही गयी है।
मीथेन गैस की कटौती हेतु ग्लोबल मीथेन शपथ
- इस प्रस्ताव के तहत 2020 के स्तर की तुलना में 2030 तक मीथेन गैस के उत्सर्जन में 30% की कटौती का लक्ष्य रखा गया जिस पर कुल 90 देशों ने अपनी सहमति व्यक्त की ।
कोयला उपयोग को कम करना
- इस सम्मेलन में यह सहमति बनी की विकासशील देश कोयले के इस्तेमाल को ‘चरणबद्ध तरीके से ख़त्म’ करने की प्रतिबद्धता के बजाए उसके उपयोग को कम करने का प्रयास करेंगे।
भारत के ऊर्जा लक्ष्य तथा कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयास
तीव्र गति से बढ़ते शहरीकरण तथा बढ़ती आर्थिक वृद्धि में भारत की ऊर्जा आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है और भारत की वर्तमान ऊर्जा परिदृश्य देखा जाए तो स्पष्ट होता है कि भारत के ऊर्जा उत्पादन में अभी भी कोयला प्रमुख स्रोत है। हालांकि भारत अधिक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के साथ विविधीकरण करने का प्रयास कर रहा है फिर भी वर्ष 2070 के अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन, सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र की वृहत भागीदारी, नवचार और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी।
भारत के ऊर्जा लक्ष्य |
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चीन तथा अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और कोयले और तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था के कारण भारत में उत्सर्जन तेज़ी से बढ़ने की उम्मीद है और इसे रोकने के लिए अनेक कदम उठाने की आवश्यकता है। इस दिशा में सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए जा रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन एवं परिवहन क्षेत्र में पहल
- भारत ने भारत स्टेज- IV से तेज़ी से आगे बढ़ते हुए भारत स्टेज-VI उत्सर्जन मानदंड को अपनाए जाने की घोषणा की गयी।
- पुराने और अयोग्य वाहनों को चरणबद्ध रूप से हटाने के लिये एक स्वैच्छिक ‘व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी लाया गया है।
- इसी क्रम में भारतीय रेलवे द्वारा भी वर्ष 2023 तक सभी ब्रॉड गेज मार्ग के पूर्ण विद्युतीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 के तहत पेट्रोल में इथेनॉल तथा डीजल में बायोडीजल मिश्रण का लक्ष्य ।
- भारत द्वारा वैश्विक EV30@30 अभियान का समर्थन किया गया जिसके तहत यह लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2030 तक बेचे जानेवाले नए वाहनों के कम-से-कम 30% इलेक्ट्रिक वाहन हो।
- इलेक्ट्रिक वाहनों पर GST को 12% से घटाकर 5% किया गया।
- इलेक्ट्रिक वाहन के प्रोत्साहन हेतु FAME योजना में सुधार के साथ FAME-II का कार्यान्वयन किया जा रहा है।
सरकारी नीतियों द्वारा पहल
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 के तहत 2030 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल तथा डीजल में 5% बायोडीजल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
- अक्षय ऊर्जा के प्रोत्साहन हेतु राष्ट्रीय विद्युत नीति 2005, राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष 2010 लाया गया।
- 2008 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन द्वारा पूजीगत सहायिकी देकर सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन दिया गया। अक्टूबर 2021 तक लगभग 47.5 गीगावाट सौर विद्युत उत्पादन क्षमता स्थापित की जा चुकी है।
- उन्नत रसायन सेल के लिये तथा इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माताओं के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन PLI योजना की शुरुआत की गयी।
- केन्द्र सरकार द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बजटीय आवंटन में वृद्धि करते हुए बजट 2021-22 में 5753 करोड़ आवंटित किया गया।
परिवहन क्षेत्र में बिहार सरकार के प्रयास |
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बिहार सरकार द्वारा नीतिगत पहल के प्रयास |
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जलवायु परिवर्तन प्रबंधन हेतु भारत की रणनीति
ग्लासगो शिखर सम्मेलन में CoP-26 में भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रबंधन के लिए प्रमुख लक्ष्यों की घोषणा की गई जिसके अनुसार भारत को रणनीति बनाने की आवश्यकता है तथा इस हेतु निम्न प्रयास किए जाने होंगे
- उपरोक्त लक्ष्यों की सफलता हेतु केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने के साथ साथ सरकार के विभिन्न स्तरों जैसे केंद्र, राज्यों, स्थानीय निकायों एवं निजी क्षेत्र के साथ भी समन्वय स्थापित करना होगा।
- निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक कार्यक्रमों, योजनाओं नीतियों पर ध्यान केनिद्रत करना होगा।
- जलवायु परिवर्तन संबंधी जनजागरुकता तथा जनभागीदारी बढा़ने के साथ साथ संबंधित सरकारों, संस्थाओं, व्यक्तियों के कार्यों एवं उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करना होगा।
- समय समय पर निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में हुई प्रगति तथा बाधाओं की बेहतर निगरानी के माध्यम से मूल्यांकन किया जाना होगा ।
COP 26 घोषणाओं संदर्भ में जलवायु प्रबंधन की दिशा में किए जा सकने वाले कार्य / लक्ष्य
नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहन
- नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत जैसे सौर,पवन, इत्यादि द्वारा हर जगह चौबीसों घंटे ऊर्जा आपूर्ति संभव नहीं है इसलिये सौर, पवन और हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा के विविध ऊर्जा मिश्रण की ओर आगे बढ़ना विवेकपूर्ण होगा।
बिजली हेतु कोयले पर निर्भरता को समाप्त करना
- शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने हेतु कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को समाप्त करना होगा तथा इसके लिए कोयले के उपयोग का लक्ष्य 2030 के आसपास निर्धारित करते हुए चरणबद्ध तरीके से इस पर निर्भरता में कमी लाना होगा।
डीजल इंजनों को बंद करना
- 2030 के शुद्ध शून्य लक्ष्य की दिशा में प्रयास हेतु भारतीय रेलवे को अपने डीजल इंजनों को चरणबद्ध रूप में बंद करने के साथ साथ इलेक्ट्रिक इंजन तथा ट्रैक्शन का विस्तार करना होगा।
अवसंरचना निवेश, बिजली कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार
- बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की खराब वित्तीय स्थिति में सुधार करना होगा ताकि नवीकरणीय क्षमता के विस्तार में निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके।
- भारत को भविष्य में अवसंरचना क्षेत्र में निवेश, क्षमता निर्माण और बेहतर ग्रिड एकीकरण जैसे क्षेत्रों में कार्य करना चाहिये।
निजी निवेश को प्रोत्साहन
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना होगा ताकि उद्योग, कंपनियां आदि भी औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन को कम करने की दिशा में अग्रसर हो।
इलेक्ट्रिक वाहन को प्रोत्साहन
- इलेक्ट्रिक वाहन को प्रोत्साहन देने हेतु वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रोनिक वाहनों की हिस्सेदारी बढ़ाने के साथ साथ चार्जिंग, सर्विसिंग आदि जैसी अवसंरचना को सार्वजनिक स्थानों जैसे पेट्रोल एवं सीएनजी पंपों जैसे सार्वजनिक उपयोगिताओं और मॉल, रेलवे स्टेशनों एवं बस डिपो पर उपलब्ध कराना होगा।
ऊर्जा दक्ष मानकों की स्थापना
- घरेलू उपकरणों हेतु न्यूनतम ऊर्जा दक्षता मानकों की समीक्षा के साथ साथ लक्ष्य के अनुसार उसका पुननिर्धारित एवं संशोधन भी किया जाना चाहिए ।
केंन्द्र एवं राज्य नियामकों के बीच सहयोग एवं समन्वय
- कुल बिजली आपूर्ति में नवीकरणीय विद्युत् की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए नवीन बिजली विनियमन और ग्रिड प्रबंधन की आवश्यकता होगी जिसके लिए केंद्र और राज्य के नियामकों को मिलकर काम करना होगा।
राज्य स्तरीय जलवायु कार्य योजनाएँ
- राज्य सरकारों को शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के सार्वजनिक परिवहन, जल वितरण, उद्योगों आदि की सुविधाओं में जलवायु कार्य योजनाएँ तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
ग्रीन हाइड्रोजन
- ग्रीन हाइड्रोजन के विकास के लक्ष्य को भी निर्धारित करने की दिशा में कार्य करने हेतु इससे संबंधित उद्योगों तथा इकाईयों को प्रोत्साहन देना होगा।
जलवायु परिवर्तन एवं नवचार/स्टार्टअप को बढ़ावा
- सस्ती एवं स्वच्छ ऊर्जा को प्रोत्साहन देने हेतु शोध एवं अनुसंधान, स्टार्ट अप को बढ़ावा देना होगा।
- भारतीय बाज़ार के स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के प्रोत्साहन हेतु रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से अनुकूल प्रोत्साहन की आवश्यकता है ।
वन क्षेत्र में वृद्धि
- केन्द्र एवं राज्य सरकारों को वनीकरण के लक्ष्य की दिशा में कार्य करना होगा क्योंकि यह जलवायु परिवर्तन को कम मदद करने के साथ साथ जल संरक्षण में भी सहायक है।
कुशल अपशिष्ट प्रबंधन
- मीथेन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को आधुनिक बनाने की आवश्यकता है।