डिजिटल दुनिया में रोजगार की परिभाषा एवं कार्य का स्वरूप बदल रहा है तथा नई वैश्विक अर्थव्यवस्था उत्पन्न हो रही है जिसे गिग इकोनोमी कहा जा रहा है। गिग इकॉनमी एक मुक्त बाजार प्रणाली है जिसमें सामान्यतः अस्थायी पद होते हैं और संगठन पूर्णकालिक कर्मचारियों के बजाय अल्पकालिक के लिए स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
गिग का अर्थ है प्रत्येक असाइनमेंट हेतु पूर्व निर्धारित भुगतान राशि यानी गिग इकोनॉमी में प्रति असाइनमेंट के आधार पर पैसा मिलता है। इस इकोनॉमी में फ्रीलान्स कार्य और निश्चित अवधि के लिए प्रोजेक्ट आधारित रोजगार शामिल है जिसमें व्यक्ति की सफलता उसकी विशिष्ट योग्यता, निपुणता तथा प्रतिभा पर निर्भर करती है ।
गिग कर्मचारी
सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के अनुसार, वह व्यक्ति जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करता है अथवा ऐसी गतिविधियों में शामिल होकर आय अर्जित करता है गिग कर्मचारी कहलाता है । सामान्य रूप में गिग कर्मचारी को 2 भागों में बांटा जा सकता है प्लेटफॉर्म और नॉन-प्लेटफॉर्म-आधारित वर्कर्स में वर्गीकृत किया जा सकता है।
गिग कर्मचारी का वर्गीकरण |
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1 | प्लेटफार्म आधारित कर्मचारी | इस श्रेणी में उन कर्मचारियों को शामिल किया जाता हैं जिनका काम किसी ऑनलाइन सॉफ़्टवेयर, एप या डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म जैसे Zomato, Ola, आदि पर आधारित होता है। |
2 | गैर-प्लेटफार्म कर्मचारी | इस श्रेणी में वे कर्मचारी शामिल हैं जो सामन्यतः पार्ट-टाइम या फ़ुल-टाइम लगे पारंपरिक क्षेत्रों में आकस्मिक वेतन और स्वयं के खाते के कर्मचारी होते हैं। |
कई पश्चिमी देशों में गिग अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है । एक अनुमान के अनुसार गिग इकोनॉमी प्रतिवर्ष 25-30% की दर से बढ़ रही है। कई कंपनियां, संस्थान भी अपनी मैनपावर प्लानिंग में निम्न तथा मध्यम स्तर पर सेवाओं हेतु गिग प्रोफेशनल को शामिल करने पर जोर दे रहे हैं। ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2025 तक गिग इकोनॉमी में 75% तक की वृद्धि हो सकती है।
इस क्षेत्र में बढ़ती नौकरी की संभावनाओं को देखते हुए सरकार द्वारा भी इसे प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसी संदर्भ में जून 2022 में NITI Aayog द्वारा गिग अर्थव्यवस्था से संबंधित अपनी तरह का पहला अध्ययन ‘इंडियाज बूमिंग गिग एंड प्लेटफॉर्म इकोनॉमी’ शीर्षक से जारी किया गया जो भारत में गिग-प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था के बारे में व्यापक दृष्टिकोण और सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
भारत में गिग इकॉनमी
- पिछले कुछ समय से गिग इकॉनमी ने आकस्मिक रोजगार सृजन में व्यापक योगदान दिया है जिससे लाखों लोग आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गए हैं।
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार गिग वर्कर्स की संख्या 2020-21 में 77 लाख (कुल कार्यबल का 1.5 प्रतिशत) से बढ़कर 2029-30 तक 2.35 करोड़ (कुल आजीविका का 4.1 प्रतिशत) हो जाएगी।
- गिग श्रमिक मुख्य रूप से गैर-कृषि क्षेत्रों क्षेत्रों खुदरा व्यापार,परिवहन क्षेत्र में कार्यरत हैं। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011-12 से 2019-20 के बीच गिग कर्मियों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज हुई है। पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा क्षेत्र में भी गिग कर्मियों की संख्या में वृद्धि आयी है।
- बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के गिग कार्यबल में सॉफ्टवेयर, साझा और पेशेवर सेवाओं जैसे उद्योगों में 1.5 करोड़ कर्मचारी कार्यरत हैं।
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गिग इकॉनोमी की विशेषता
भारत में कोविड 19 महामारी के बाद कई कंपनियों द्वारा अपने परिचालन व्यय को कम करने, गैर-स्थायी कार्यों, विशिष्ट परियोजनाओं हेतु संविदा कर्मचारियों द्वारा कार्य की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जो गिग संस्कृति के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। गिग इकॉनोमी की निम्न विशेषताओं के कारण यह संपूर्ण विश्व के साथ साथ भारत में भी तेजी से प्रचलित हो रही है।
- डिजीटल तकनीक के माध्यम से कर्मी अपने कार्य को किसी कार्यालय या किसी निश्चित स्थान जाकर करने के बजाए कहीं से भी काम को पूर्ण कर सकता है।
- भौतिक कार्यस्थल नहीं होने के कारण जहां नियोक्ता को अपने कार्य हेतु सर्वोत्तम प्रतिभा के चयन की स्वतंत्रता होती है वहीं व्यक्ति अपनी सहूलियत के अनुसार काम कर सकते हैं।
- गिग इकोनॉमी एक कर्मचारी को लचीलापन, कार्य एवं जीवन शैली में संतुलन, पसंदीदा काम, अच्छी कमाई जैसी सभी सुविधाएं उपलबध कराती है जिसके कारण यह अन्य प्रोफेशनल तनावपूर्ण नौकरी का एक विकल्प बन रहा है है।
- गिग इकोनॉमी प्रोफेशन दुनिया में लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है जिसके माध्यम से बड़ी संख्या में लोग सूक्ष्म उद्यमी बन रहे हैं।
- गिग इकोनॉमी में अपने भविष्य के प्रति नयी तथा अलग दृष्टिकोण रखनेवाली नई पीढ़ी को अपनी पसंद के कार्य की स्वतंत्रता होती है जिससे नई पीढ़ी इस ओर आकर्षित हो रही है ।
- भारत में तेजी से विकसित हो रहे स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को अपने मुख्य गतिविधियों से इतर कार्यों हेतु परियोजना, प्रोजेक्ट आदि में अल्पकालिक श्रमिक की पूर्ति में गिग इकॉनोमी सहायक है।
गिग इकोनोमी संबंधी मुद्दे
नगरीय पहुँच
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार हांलाकि गिग इकॉनमी रोज़गार के व्यापक विकल्पों के साथ सभी के लिये उपलब्ध है लेकिन इंटरनेट सेवाओं और डिजिटल प्रौद्योगिकी तक पहुँच जैसे कारणों से यह मुख्य रूप से गिग इकोनोमी काफी हद तक एक शहरी परिघटना बन गयी।
- उल्लेखनीय है कि कोविड -19 प्रेरित लॉकडाउन अवधि में गिग इकॉनमी अपने सबसे अच्छे रूप में थी और गिग श्रमिकों के कारण शहरी क्षेत्रों में नागरिक अपने घरों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पाने में सफल रहे।
श्रम नियमों संबंधी लाभ न मिलना
- गिग वर्कर्स को श्रम नियमों से संबंधित अनेक लाभ जैसे मज़दूरी, काम के घंटे, काम करने की स्थिति, सामूहिक सौदेबाज़ी आदि अधिकारों का लाभ नहीं मिल पाता।
सुरक्षा और स्वास्थ्य जोखिम
- डिजिटल प्लेटफॉर्म के साथ एप आधारित टैक्सी संचालन, डिलीवरी कार्यों आदि क्षेत्रों में महिला श्रमिकों को विभिन्न प्रकार की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
कौशल के अनुरुप रोजगार नहीं मिलना
- एक ओर जहां विशेष ज्ञान एवं कौशल पर ही कोई व्यक्ति गिग इकोनॉमी में कार्य कार्य कर सकता है वही दूसरी ओर कई श्रमिकों को उनके कौशल, उच्च शैक्षिक उपलब्धियों के अनुरूप कार्य नहीं मिल रहा ।
अनुबंध संबंधी चुनौतियाँ
- डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काम करने की स्थितियां व्यापक स्तर पर सेवा समझौतों की शर्तों द्वारा नियंत्रित होती है इस कारण संबंधित शर्ते के नियोक्ता एवं कर्मचारी के बीच संविदात्मक संबंधों को रोज़गार के अलावा अन्य के रूप में चिह्नित करता हैं।
गिग इकॉनमी संबंधी चिंताएं
- वास्तव में गिग इकोनामी अनौपचारिक श्रम क्षेत्र का ही विस्तार है जो लंबे समय से प्रचलित और अनियंत्रित है। इसमें सामाजिक सुरक्षा, कार्य सुरक्षा, बीमा, अवकाश आदि की सुविधा नहीं होती। भारत में इसे भी नियमित करने की आवश्यकता है तथा इस हेतु श्रम कानूनों में सुधार जरूरी है।
- गिग इकॉनोमी में गिग कर्मचारियों के सीखने और विकास के अवसरों की कमी है। गिग अर्थव्यवस्था में नियोक्ता प्लेटफाम श्रमिकों के कौशल का मुद्रीकरण करती है और शायद ही श्रमिकों के सीखने अथवा कैरियर के विकास में निवेश हेतु कोई प्रेरणा होती है।
- निम्न आय, सीमित सुरक्षा, संगठनात्मक और सामाजिक पदानुक्रम में किसी भी प्रकार की तरक्की की अनुपस्थिति से श्रमिकों के शोषण की संभावना बढ़ जाती है और उनमें निराशा आती है।
- गिग कर्मियों को संघ, संगठन बनाने के लिए कोई कानूनी समर्थन नहीं है और इनकी बातों, समस्याओं को सुनने वाला कोई औपचारिक मंच न होने से इनका शोषण हो सकता है।
सुझाव
नीति आयोग ने रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि गिग इकोनोमी कर्मचारियों को विकल्प प्रदान करते हैं और दिव्यांग, महिलाओं आदि को कार्यबल में प्रवेश करने के अवसर प्रदान करते हैं। अतः ऐसे श्रमिकों और उनके परिवारों के लिये आय सुरक्षा, कार्य सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा एवं अन्य उपायों को विस्तार किए जाने की आवश्यकता है।