हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार भारत विश्व की 5वी सबसे बड़ी एवं सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है । पिछले कुछ समय पहले भारतीय रिवर्ज बैंक, विश्व बैंक आदि जैसी संस्थाओं द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में जो अनुमानों जारी किए गए थे उसमें यह अनुमान लगाया गया था कि आनेवाले वर्षों में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा।
हाल ही में जारी आंकड़ों को देखा जाए तो ये अनुमान सही प्रतीत हो रहे हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने आंकड़ों में भारत की अर्थव्यवस्था के 7.2 प्रतिशत की दर से बढ़ने की उम्मीद व्यक्त की थी जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सबसे हालिया जारी पूर्वानुमान 7.4 प्रतिशत से थोड़ा कम था । इन अनुमानों के आधार पर यह अनुमान लगाया गया था कि आनेवाले समय में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। हाल ही में जारी आंकड़ों को देखा जाए तो ये अनुमान सही प्रतीत हो रहे हैं।
अगस्त 2022 में ब्लूमबर्ग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत ब्रिटेन को पछाड़कर अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और यह अप्रैल-जून तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड विस्तार होने होने से हुआ ।
राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय द्वारा हालिया जारी आकड़ों के अनुसार अप्रैल-जून तिमाही में कृषि और सेवा क्षेत्र के फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी आयी है । भारतीय अर्थव्यवस्था के इस प्रदर्शन से भारतीय बाजार में न केवल वैश्विक निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा बल्कि निवेश आकर्षित करने में भी मदद मिलेगी।
भारतीय अर्थव्यवस्था में व्याप्त विरोधाभासी आवेग
हांलाकि उपरोक्त तथ्य भारतीय अर्थव्यवस्था की समग्र तस्वीर प्रस्तुत नहीं करते । यह सच है कि एक ओर जहां दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है वही दूसरी ओर रोजगार के अवसरों में कमी, कम वेतन वृद्धि, सीमित गतिशीलता और बढ़ती आर्थिक असमानता, भारत के आर्थिक संकेतक सुधार के परस्पर विरोधी संकेत दे रहे हैं जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है:-
अनौपचारिक श्रम क्षेत्र में व्याप्त संकट
- हांलाकि अर्थव्यवस्था ने अपने महामारी पूर्व स्तर को पार कर लिया है परन्तु श्रम बाजार विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र संकट में फंस हुआ है।
- वर्ष 2022 में अप्रैल से जुलाई में मनरेगा के तहत काम मांगने वाले परिवारों की संख्या काफी अधिक रही जिससे श्रम क्षेत्र में दबाव के स्पष्ट संकेत मिलते हैं।
- उल्लेखनीय है कि मनरेगा के तहत काम की यह बढ़ी हुई मांग अधिक लाभकारी रोजगार के अवसरों की निरंतर अनुपस्थिति को दर्शाती है। यह स्थिति अर्थव्यवस्था के औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों के बीच निरंतर विचलन की ओर इशारा करती है।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार की फर्मों के बीच निरंतर संघर्ष को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि श्रम बाजार में उपस्थित तनाव तुरंत कम होने की संभावना नहीं है।
अपेक्षाकृत कम वेतन वृद्धि की समस्या
- अनौपचारिक श्रम बाजार में कम वेतन वृद्धि का संकट व्याप्त है । ग्रामीण मजदूरी के आंकड़े के अनुसार पिछले एक वर्ष में सामान्य कृषि मजदूरों, निर्माण श्रमिकों और गैर-कृषि मजदूरों में मजदूरी वृद्धि खुदरा मुद्रास्फीति से कम रही जो इनके वास्तविक क्रय शक्ति में ह्रास को दर्शाता है।
बढ़ती असमानता
- रोजगार अवसरों की कमी तथा वेतन वृद्धि में कमी के कारण आर्थिक असमानता बढ़ने की संभावना है। अर्थव्यवस्था में एक ओर जहां विशेष रूप से उच्च लागत वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय तेजी से बढ़ रहा है वही दूसरी ओर विशेष उपभोक्ताओं वर्ग में निराशावादी माहौल है जो कोविड महामारी से पहले देखे गए स्तरों से काफी नीचे है।
- हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री द्वारा दिया गया बयान भी प्रासंगिक है जिसमें कहा गया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति आय 2000 डॉलर है जबकि जिस ब्रिटेन से पीछे छोड़ते हुए हम आगे निकल आए है वहां प्रति व्यक्ति आय 45 हजार डॉलर है।
- इसी क्रम में हालिया जारी आंकड़ो के अनुसार एक ओर जहां विश्व का दूसरा सबसे अमीर व्यक्ति भारतीय है वहीं दूसरी ओर वैश्विक भूखमरी सूचकांक में 116 देशों की श्रेणी में भारत 101वें स्थान पर है।
व्यवसाय में कमी के बावजूद कंपनियों का उच्च लाभ
- भारतीय अर्थव्वस्था में व्यवसाय एक वर्ष पूर्व की तुलना में कम है फिर भी कंपनियों का लाभ रिकार्ड स्तर पर है। अर्थव्यवस्था में इस प्रकार की विरोधी प्रवृत्तियों को देखकर कहा जा सकता है कि बड़ी औपचारिक फर्मों ने छोटे फार्मों की कीमत पर बाजार हिस्सेदारी हासिल कर ली है और रोजगार की संभावनाएं कम हुई ।
निष्कर्ष
यद्यपि भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान तस्वीर में सुस्त आर्थिक गतिविधि, रोजगार में कमी, कम वेतन वृदि्ध, बढ़ती असमानता, अनिश्चित व्यावसायिक संभावनाएं जैसे तत्व दिखायी देते हैं फिर भी भारत धीरे-धीरे आर्थिक सुधार की राह पर अग्रसर है और वर्तमान में अर्थव्यवस्था में जो बदलाव हो रहे हैं निश्चित ही उससे निवेश तथा आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी और भारतीय अर्थव्यवस्था अपने उच्चतम स्तर को प्राप्त करेगी।