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समान कार्य हेतु समान वेतन

कामकाजी महिलाओं के लिए सामाजिक न्याय को हासिल करने तथा देश के लिए आर्थिक विकास को गति देने के लिए समान कार्य हेतु समान वेतन की अवधारणा अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है । सितम्‍बर 2022 में मनाए गए तीसरे अंतर्राष्ट्रीय समान वेतन दिवस 2022 में भी समान मूल्‍य के कार्य हेतु समान वेतन के सिद्धांत को प्रभावी और त्वरित रूप से लागू करने के लिए विचार किया गया । 

जनवरी 2022 में सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिए गए एक फैसले में कहा गया कि “समान काम हेतु समान वेतन” किसी भी कर्मचारी में निहित मौलिक अधिकार नहीं है, हालांकि यह सरकार द्वारा प्राप्त किया जाने वाला एक संवैधानिक लक्ष्य है।

उल्‍लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-8 के तहत भी वर्ष 2030 तक सभी महिलाओं और पुरुषों के लिए पूर्ण और उत्पादक रोजगार तथा समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन हासिल करने जैसे लक्ष्‍य को शामिल किया गया है। वर्तमान संदर्भ में  जब कोरोना महामारी ने महिला कामगारों के नौकरी और आय पर प्रतिकूल एवं असमान प्रभाव डाला है तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है ।

समान कार्य हेतु समान वेतन संबंधी भारतीय संविधान में प्रावधान

भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना
भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त करने और प्रदान करने का प्रयास करती है।
मूल अधिकार का अनुच्छेद 14
यह अनुच्‍छेद भारतीय क्षेत्र के भीतर समानता की गारंटी देता है।
मूल अधिकार का अनुच्छेद 15
यह अनुच्‍छेद लिंग, धर्म, जाति, वंश आदि के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
भारतीय संविधान का  अनुच्छेद 39 (डी) भाग IV
“समान काम के लिए समान वेतन” के कानूनी सिद्धांत का उल्लेख है जो व्यक्ति के अधिकारों को संतुलित करने, सम्मान और समानता को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
जिसमें कहा गया है कि राज्य इस उद्देश्य को हासिल करने नीति को निर्देशित करना चाहिए कि पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान पारिश्रमिक है।
इसमें यह प्रावधान है कि जहाँ कार्य, सभी परिस्थितियाँ और विचार समान हैं तो समान पद अथवा पद धारण करने वाले लोगों के साथ लिंग के आधार पर अलग व्यवहार नहीं किया जाएगा।

समान कार्य हेतु समान वेतन संबंधी अंतर्राष्‍ट्रीय प्रावधान

अंतर्राष्‍ट्रीय श्रम संगठन के प्रावधान
अंतर्राष्‍ट्रीय श्रम संगठन ने अपने संविधान में समान मूल्य के काम के लिए समान वेतन का प्रावधान किया है।
महिला भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन
यह कन्‍वेंशन लैंगिक समानता लाने और महिलाओं और लड़कियों के बीच भेदभाव और कमजोरियों के सभी रूपों को संबोधित करने हेतु अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
समान वेतन अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (EPIC)
अंतर्राष्‍ट्रीय श्रम संगठन, संयुक्‍त राष्‍ट्र तथा महिला और आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के नेतृत्‍व में बना गठबंधन पूरी दुनिया में सभी स्‍थानों पर महिलाओं  और पुरुष के लिए समान वेतन प्राप्त करने के अधिकार को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।

समान कार्य हेतु समान वेतन की दिशा में भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम

भारतीय संविधान तथा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव उन्मूलन, लैंगिक समानता लाने और महिलाओं और लड़कियों के बीच भेदभाव को संबोधित करने हेतु लाए गए अंतरराष्ट्रीय कानूनी फ्रेमवर्क के संदर्भ में भारत सरकार द्वारा अनेक प्रयास किए गए है जो निम्‍नलिखित है-

  1. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948– 1948 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम को लागू करने वाले अग्रणी देशों में से एक भारत था ।
  2. समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976- वर्ष 1976 में समान पारिश्रमिक अधिनियम को अपनाया गया।
  3. मजदूरी संहिता – वर्ष 2019 में भारत द्वारा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 तथा समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 में सुधार करते हुए मजदूरी संहिता को अधिनियमित किया गया।
  4. मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 – इस अधिनियम में वर्ष 2017 में संशोधन किया गया जिसके द्वारा 10 या अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों में कार्यरत सभी महिलाओं हेतु वेतन सुरक्षा के साथ मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया।
  5. हात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)- 2005 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप से लैंगिक मजदूरी संबंधी असमानता को कम करने में मदद मिली ।
  6. कौशल भारत मिशन- इसके द्वारा महिलाओं को प्रासंगिक एवं बाजार आधारित कौशल से परिपूर्ण करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि क्षमता एवं कौशल विकास द्वारा मजदूरी में व्‍याप्‍त लैंगिक असमानता को दूर किया जा सके।

लिंग आधारित भेदभावपूर्ण व्यवहार

  • समान मूल्य के कार्य के लिए महिलाओं को कम मजदूरी दी जाती है।
  • महिला प्रधान व्यवसायों और उद्यमों में संलग्न महिलाओं के कार्य का कम मूल्यांकन किया जाता है।
  • गैर-माताओं की तुलना में माताओं को यानी मातृत्‍व मजदूरी के रूप में कम वेतन का भुगतान किया जाता हैं।

महिलाओं पर महामारी का प्रभाव

  • कोरोना महामारी ने महिलाओं को उनकी आय सुरक्षा के मामले में बुरी तरह प्रभावित किया है। महामारी के दौरान कई महिलाएं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण बच्चों और बुजुर्गों और परिवार की पूर्णकालिक देखरेख हेतु लौट आयी और इस क्रम में उन्‍होंने अपनी अपनी आजीविका को छोड़ दिया।
  • वैश्विक वेतन रिपोर्ट 2020-21 के अनुसार मजदूरी पर भारी गिरावट का दबाव रहा और पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कुल मजदूरी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
  • 1993-94 के आंकडों के अनुसार भारतीय महिलाओं ने अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में औसतन 48% कम कमाया जो राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में घटकर 28% रह गया लेकिन महामारी ने इस प्रगति को उलट दिया क्योंकि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2020-21 के प्रारंभिक अनुमानों में 2018-19 और 2020-21 के बीच इसमें 7% की वृद्धि दर्ज हुई।

 

 

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