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वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत क्‍या है?

वह सिद्धांत जिसके माध्यम से महाद्वीपों और महासागरों की अवस्थिति को समझने का प्रयास किया महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत कहा गया। उल्लेखनीय है कि महाद्वीपों और महासागरों की अवस्थिति वर्तमान में जिस प्रकार से मानचित्र पर दिखाई देती है, हमेशा ऐसी नहीं रही है। इसी क्रम में भविष्य में भी महाद्वीप व महासागरों की स्थिति में परिवर्तन होगा तथा इनकी वर्तमान स्थिति यथावत नहीं रहेंगी।

महाद्वीपों और महासागरों की अवस्थिति को समझने हेतु कई विद्वानों जैसे एफ बी टेलर, फ्रांसिस बेकन, फ्रेंकोइस, एंटोनियो स्नाइडर जैसे विद्वानों द्वारा अपने अपने मत प्रस्तुत किए गए लेकिन इस सिद्धांत के वैज्ञानिक रूप से प्रतिपादन का श्रेय वेगनर महोदय को जाता है ।

जर्मन जलवायुवेत्ता अल्फ्रेड वेगनर वेगनर पृथ्वी की जलवायु समस्या को सुलझाने में लगे थे तथा अपने अध्ययन के क्रम में उन्होंने 1912 में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत प्रस्तावित कर इसे वैज्ञानिक आधार दिया। कालांतर में भूगोलवेत्तओं द्वारा महाद्वीपों और महासागरों के प्रवाह को सागरीय नितल प्रसरण एवं प्लेट विवर्तनिकी जैसे सिद्धांतों के माध्यम से और मजबूती प्रदान की गयी।

वेगनर का मुख्य उद्देश्य

वेगनर मुख्यतः जलवायुवेत्ता थे और पृथ्वी पर अतीत में हुए जलवायु परिवर्तन के कारणों का पता लगाने के क्रम में पाया कि वर्तमान के ठंडे प्रदेशों जैसे अंटार्कटिका, नार्वे, स्वीडन  में कोयले के भंडार है तो गर्म प्रदेशों जैसे- ब्राजील,  अफ्रीका, प्रायहीपीय भारत में  हिमावरण के चिह्न पाए गए ।

अंटार्कटिका आदि जैसे स्थानों पर कोयला मिलना बताता है कि कभी वहां पर उष्ण तथा आर्द्र जलवायु होगी। प्रायहीपीय भारत जो वर्तमान में उष्ण प्रदेश है वहां पर कुछ भागों में हिमावरण चिह्न पाया जाना  तथा दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका में भी कार्बोनीफेरस हिमानीकरण का साक्ष्य पाया जाना बताता है कि पूर्व में ये स्थल ठंडे प्रदेश होंगे। इन विशेषताओं का पता लगाना ही वेगनर का मुख्य उद्देश्य था और इस क्रम में उन्होंने निम्न 2 संभावनाओं पर विचार किया।

  1. यदि स्थलभाग स्थिर रहे होंगे तो जलवायु कटिबंधों का स्थानांतरण हुआ होगा।
  2. यदि जलवायु कटिबंध स्थिर रहे होंगे तो स्थल भाग गतिशील हुए होंगे।

उपरोक्त दोनों संभावनाओं पर विचार के क्रम में वेगनर महोयर ने जलवायु कटिबंधों में बदलाव को नहीं माना क्योंकि जलवायु कटिबंधों  के बदलाव सूर्य द्वारा नियंत्रित होती है । अत: उन्होंने स्थलखंड के स्थानांतरण एवं प्रवाह पर विश्वास करते हुए अपने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत (Continental drift theory) का प्रतिपादन किया ।

महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत का आधार

वेगनर के अनुसार इस सिद्धांत की आधारभूत संकल्पना यह थी कि सभी महाद्वीप एक बड़े भूखंड पैंजिया ( पैंजिया अर्थ संपूर्ण पृथ्वी) से जुड़े हुए थे तथा आज के सभी महाद्वीप इस भूखंड के भाग थे। पैंजिया एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था जिसको पैंथालासा (जल ही जल) कहा गया । पैंजिया के मध्य में एक उथला एवं संकीर्ण महासागर था जिसे टेथिस सागर नाम दिया गया।

  • वेगनर महोदय के अनुसार कार्बनीफेरस यूग के पूर्व तक सभी महाद्वीप पैंजिया के रूप में जुड़े हुए थे । लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले इस बड़े महाद्वीप पैंजिया का विभाजन आरंभ हुआ। पैंजिया पहले दो बड़े महाद्वीपीय खंडों लारेंशिया (Laurasia) और गोंडवानालैंड (Gondwanaland) क्रमश: उत्तरी व दक्षिणी भूखंडों के रूप में विभक्त हुआ। इसके बाद लारेशिया व गोडवानालैंड धीरे-धीरे अनेक छोटे हिस्सों में बँट गए जो आज के महाद्वीप  हैं।
  • गौडवानालैंड में वर्तमान के दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, मेडागास्कर तथा प्रायद्वीपीय भारत  शामिल है जबकि अंगारालैंड के टूटने से उत्तर अमेरिका, यूरोप तथा एशिया महाद्वीप का निर्माण हुआ।
  • कार्बनीफेरस युग के अंतिम चरण में चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति और पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से पैंजिया का विखंडन आरंभ हुआ और 2 भागों अंगारालैड तथा गोंडवानालैंड में बंट गया।
  • कालांतर में जुरैसिक  युग में पुनः इन दोनों भूखंडों में विभाजन आरंभ हुआ और वर्तमान के महाद्वीपों का निर्माण हुआ और प्लीस्टोसीन युग तक महाद्वीपों ने वर्तमान स्थिति  से मिलता जुलता रूप धारण किया।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में प्रमाण

वेगनर महोदय ने भूगर्भिक बनावट, जलवायु तथा वनस्पतियों के वितरण के आधार पर अपने सिद्धांत को प्रमाणित करने का प्रयास किया और बताया कि वर्तमान महाद्वीपों को जोड़कर पैंजिया का रूप दिया जा सकता है। वेगनर द्वारा इस सिद्धांत के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए ।

महाद्वीपीय साम्यता

  • अटलांटिक महासागर के दोनों तरफ की तटरेखा में आश्चर्यजनक साम्यता है। दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाओं के साथ साथ अमेरिका के पूर्वी तट और यूरोप के पश्चिम तट आश्चर्यजनक साम्य दिखाती हैं।वेगनर महोदय द्वारा इसे साम्य स्थापना या Jigsaw Fit की संज्ञा दी गयी ।

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    दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका में महाद्वीपीय साम्‍यता
  • इस साम्यता के कारण बहुत से वैज्ञानिकों ने भी दक्षिण व उत्तर अमेरिका तथा यूरोप व अफ्रीका के एक साथ जुड़े होने को संभावना को व्यक्त किया।
  • इसके अलावा पूर्वी अफ्रीका में इथियोपिया तथा इरीट्रिया तथा पश्चिम भारत एवं पकिस्तान की तट रेखा को संयुक्त किया जा सकता है।

महासागरों के पार तटीय चट्टानों की आयु में समानता

  • ब्राज़ील तट और पश्चिमी अफ्रीका के तट पर लगभग 200 करोड़ वर्ष प्राचीन जुरैसिक काल की शैल समूहों की एक पट्टी मिलती है जो आपस में समानता प्रदर्शित करती है।  इससे यह पता चलता है कि प्राचीन काल में दोनों किनारे आपस में जुड़े होंगे ।

तटवर्ती पर्वतों के क्रमों में समानता

  • भूगर्भिक  प्रमाणों के आधार पर अटलांटिक महासागर के दोनों तटों पर पाए जानेवाले कैलिडोनियम  पर्वत तथा हर्सीनियम पर्वत क्रमों में समानता पायी जाती है।

प्लेसर निक्षेप

  • अफ्रीका महाद्वीप के घाना तट पर स्वर्णयुक्त चट्टानों की अनुपस्थिति के बावजूद स्वर्ण के बड़े निक्षेप मिलते हैं, जबकि स्वर्णयुक्त चट्टानी शिराएँ ब्राजील में मिलती है। यह घटना अतीत में इनके आपस में जुड़े होने का प्रमाण देता है।

टिलाइट

  • टिलाइट हिमानी निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानें हैं। प्रायद्वीपीय भारत के टिलाइट तलछटों के प्रतिरूप इस क्षेत्र में एक लंबी अवधि वाले हिमाच्छादन का प्रमाण देते हैं।
  • इसी क्रम में दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका एवं मेडागास्कर में हिमानी निर्मित ‘टिलाइट चट्टानें’ प्राचीन जलवायु और महाद्वीपों के जुड़ाव का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।

जीवाश्मों का वितरण

सिनोग्राथुस
लगभग 3 मीटर लंबा सिनोग्राथुस के अवशेष अर्जेंटीना तथा अफ्रीका में पाए गए।
मेसोसॉरस
मेसोसॉरस उथले एवं मीठे पानी में रहनेवाला एक छोटा रेंगने वाला जीव था जिसके अवशेष ब्राजील एवं अफ्रीका दोनों स्थानों पर पाए गए । ये दोनों स्थान वर्तमान में एक दूसरे से 4800 किमी दूर हैं।
लिस्ट्रोसॉरस
लिस्ट्रोसॉरस एक रेंगने वाला जीव था जिसके अवशेष अफ्रीका, अंटार्कटिका एवं भारत में पाए गए । ये सभी स्थल वर्तमान में एक दूसरे से कई किमी दूर हैं।
लैमूर
लैमूर के जीवाश्म भारत, अफ्रीका और मेडागास्कर में पाए गए । इस कारण कुछ वैज्ञानिकों ने  तीनों स्थानों को संयुक्त रूप से लेमूरिया स्थलखंड का नाम भी दिया है।

वानस्पतिक साक्ष्य

  • ग्लोसोप्टारिस-भारत, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका व फॉकलैंड द्वीप में ‘ग्लोसोप्टरिस’ नामक वनस्पति के प्रमाण मिलना यह प्रदर्शित करता है कि ये स्थलखंड अतीत में आपस में जुड़े रहे होंगे।

महाद्वीपीय विस्थापन संबंधी बल एवं दिशा

वेगनर  के अनुसार पैंजिया में विभाजन के बाद 2 दिशाओं में उसका प्रवाह हुआ एक भूमध्य रेखा के दक्षिण  की ओर और दूसरा भूमध्य रेखा के उत्तर की ओर । भूखंडों के इस प्रकार के  प्रवाह के लिए निम्र बलों को उत्तरदायी माना।

गुरूत्वाकर्षण और प्लवनशीलता बल

  • वेगनर के अनुसार महाद्वीप सियाल का बना है जिसका घनत्व सीमा से कम है और बिना किसी बाधा  के सियाल सीमा पर तैर रहा है। इस बल के प्रभावाधीन भूखंडों का प्रवाह भूमध्यरेखा की ओर हुआ जिससे भारत, आस्ट्रेलिया मेडागास्कर व अण्टार्कटिका का निर्माण हुआ।

ज्वारीय बल

  • महाद्वीपों का पश्चिम की ओर प्रवाह सूर्य तथा चन्द्रमा के ज्वारीय बल के कारण हुआ जिससे उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका बने। वेगनर का मानना है कि ज्चारीय घर्षण पृथ्वी के घूमने में बाधा उत्पन्न करती है जिसके कारण महाद्वीपीय भाग पीछे छूट जाते है और स्थलभाग पश्चिम की ओर प्रवाहित होने लगते हैं।
  • इस प्रवाह के कारण उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका दोनों अफ्रीका महाद्वीप से अलग हो गए और इनके बीच अटलांटिक महासागर अस्तित्व  में आया।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत और पर्वतों का निर्माण

  • अपने सिद्धांत के सहारे वेगनर ने वलित पर्वतों की उत्पत्ति संबंधी समस्या को भी सुलझाने का प्रयास किया । उन्होंने  बताया कि गुरूत्वाकर्षण और प्लवनशीलता बल के कारण होनेवाले प्रवाह से जब अफ्रीका और यूरेशिया एक दूसरे के पास आ गए और इन दोनों के बीच स्थित टेथिस सागर के जमाव के ऊपर उठने से हिमालय, आल्पस, हिन्दुकुश जैसे वलित पर्वतों का निर्माण हुआ ।
  • सूर्य तथा चन्द्रमा के ज्वारीय बल के कारण जब उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी अमेरिका पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित हो रहे थे तो सीमा द्वारा बाधा उत्पन्न करने के कारण इन महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे वलित हो गए जिसके कारण रॉकीज और एंडीज पर्वतों का निर्माण हुआ।
  • इस प्रकार वेगनर ने इसके माध्यम से वलित पर्वतों की समस्या को सुलझाने का प्रयास किया लेकिन यहां पर उनकी बातों में विरोधाभास है । एक ओर उनका कहना है कि सियाल बिना किसी बाधा के सीमा पर तैर रहा है लेकिन बाद में कहा गया कि सीमा द्वारा सियाल के प्रवाह में बाधा डाली गयी जिसके कारण  उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के पर्वत बने।

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का मूल्यांकन

वेगनर जलवायुवेत्ता थे तथा उनका प्रारम्भिक उद्देश्य अतीत काल में हुए जलवायु सम्बन्धी परिवर्तनों का समाधान करना था लेकिन इस सिद्धांत में जैसे जैसे समस्याएं आती गयी वैसे वैसे वह इसका विस्तार करते गए । फलतः  इस सिद्धांत में उन्होंने कई गलतियां की और कई परस्पर विरोधी बातें भी कह गये।

  1. वेगनर ने अपने सिद्धांत में महाद्वीपों के प्रवाह हेतु ज्वारीय तथा गुरुत्वाकर्षण बल का सहारा लिया जो इतने बड़े स्थलखंड के प्रवाह हेतु सर्वथा अनुपयुक्त हैं।
  2. वेगनर द्वारा प्रारम्भ में बताया कि सियाल  बिना रुकावट के सीमा पर तैर रहा था लेकिन बाद में बताया कि सीमा से सियाल पर रुकावट आयी। यदि इसे सही मान भी लिया जाए और यदि सियाल से सीमा कठोर है तो सियाल उस पर तैर कैसे सकता है?
  3. एक ओर जहां अटलांटिक महासागर के दोनों तटों को पूर्णतया नही मिलाया जा सकते वहीं दोनों तटों की भूगर्भिक बनावट हर जगह मेल नहीं खाती।

महाद्वीपीय विस्थापन और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत में अंतर

महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत
सिद्धांत का प्रतिपादन 1912 में जर्मन विद्वान एल्फ्रेड वेगनर द्वारा किया गया। 1960-70 के दशकों में प्रतिपादित सिद्धांतो, परिकल्पनाओं तथा प्रक्रमों का  प्रतिफल ।
पृथ्वी को सियाल, सीमा तथा निफे नामक तीन परतों में बांटा गया । पृथ्वी को लिथोस्फियर, स्थेनोस्फियर तथा मैसोस्फियर में बांटा गया ।
महाद्वीप हल्के परत सियाल के बने हुए हैं और भारी परत सीमा पर तैर रहे हैं । प्लेटें लिथोस्फीयर के सख्त तथा सुदृढ़ भाग हैं जो स्थेनोस्फीयर पर तैर रहे हैं।
सिर्फ महाद्वीपों का विस्थापन बताया गया। महाद्वीपों और महासागरों दोनों  में गति बताया गया ।
पेन्जिया के टूटने से महाद्वीपों का विस्थापन पश्चिमी तथा उत्तरी दिशा में हुआ। प्लेटों के टूटे हुए भाग सभी दिशाओं में विस्थापित होते हैं।
पेन्जिया के टूटने से वर्तमान महाद्वीप बने लेकिन यह सिद्धांत यह नहीं बताता कि भविष्य में  सभी महाद्वीप फिर से एक बड़े महाद्वीप के रूप में एकत्रित होंगे या नहीं । सभी महाद्वीप एक बड़े महाद्वीप से बने हैं और वे भविष्य में मिलकर फिर से एक बड़े महाद्वीप का निर्माण कर सकते हैं।
महाद्वीपों का साधारण रूप में टूटना बताया गया और किसी प्रकार के किनारों (Margins) का उल्लेख नहीं किया गया । प्लेटों की गति में विभिन्न प्रकार के किनारों (Margins) जैस अपसरण (Divergent), अभिसरण (Convergent) तथा रूपांतर भ्रंश को मान्यता दी गई है
पर्वतों के निर्माण का कारण सीमा और सियाल के घर्षणात्मक संयोग को बताया गया । प्लेट विवर्तनिकी में इसका कारण टेक्टोनिक प्लेटों के अभिसरण को बताया गया ।
महाद्वीपीय विस्थापन ज्वालामुखी निर्माण प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं देता। प्लेट विवर्तनिकी ज्वालामुखियों के निर्माण की प्रक्रिया की जानकारी देता है।
महाद्वीपीय विस्थापन के लिए गुरुत्वाकर्षण बल तथा प्लवनशीलता बल  तथा ज्वारीय बल (Tidal Force) को उत्तरदायी माना गया । प्लेट विवर्तनिकी के लिए भूगर्भ की संवहनीय धाराएं, मेंटल प्लूम, स्लैब खिंचाव आदि बल को उत्तरदायी माना गया है।

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