भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में चंपारण आंदोलन में बिहार का योगदान एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है क्योंकि इस आंदोलन द्वारा ना केवल राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा मिली बल्कि गांधी जी और किसान वर्ग दोनों के लिए मील का पत्थर साबित हुई । चंपारण आंदोलन के दौरान गांधीजी ने जिन तरीकों को अपनाया वे कालांतर में हुए राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रमुख आधार बनी तथा गांधी जी का सत्य एवं अहिंसा का विचार राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख हथियार बने। चंपारण आंदोलन तत्कालीन सरकारी आर्थिक व्यवस्था के विरुद्ध असंतोष तथा प्रतिरोध का परिणाम था । चंपारण में नील की खेती की दो विधियां प्रचलित थी-
- जीरात- बागान मालिकों द्वारा प्रत्यक्ष देखरेख में नील की खेती।
- आसामी बार- इसमें तिनकठिया, कुरतौली (सर्वाधिक शोषणकारी) तथा खुश्की प्रथा शामिल थे।
चंपारण में 19वीं सदी में गोरे बागान मालिकों ने नील की खेती हेतु एक अनुबंध किया जिसे तिनकठिया प्रणाली कहा गया । तीनकठिया प्रणाली एक शोषणकारी व्यवस्था थी जिसके प्रावधान निम्न थे-
- प्रति एक बीघा में 3 कट्ठे पर नील की खेती करना अनिवार्य ।
- नील कृषकों को अपनी उपज के मूल्य निर्धारण का अधिकार नहीं प्राप्त था ।
- मिल मालिकों द्वारा लगाए गए मूल्य पर ही अपने उत्पाद को बेचना होता था ।
- इनको अत्यधिक कम मजदूरी, बेगार के रूप में काम करवाया जाता था ।
- किसी कारणवश यदि नील नहीं उपज पाता तो भारी जुर्माने का प्रावधान था ।
- किसी कारण अनुबंध समाप्त करने पर अन्य तरह की शोषणकारी व्यवस्था तथा प्रताड़ना ।
तत्कालीन भारत एवं नील की खेती
इस समय रासायनिक रंगों के आविष्कार से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय नील की मांग कम हो गई थी और भारतीय नील विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धी ना रह सके जिसके कारण किसानों की हालत और दयनीय हो गई । इसी क्रम में बागान मालिकों ने धीरे-धीरे किसानों को नील की खेती से मुक्त करना प्रारंभ कर दिया लेकिन इसके बदले में लगान की दरों में काफी वृद्धि कर दी गई । जिन क्षेत्रों में नील की खेती नहीं होती थी वहां भी लगान की दर में बढ़ोतरी हुई । इस प्रकार से इस क्षेत्र के किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी ।
इन्हीं परिस्थितियों में चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल ने 1916 के लखनऊ अधिवेशन में किसानों की दशा सुधारने हेतु गांधी जी को चंपारण आने का निमंत्रण दिया ।
चंपारण आंदोलन एवं गांधी जी का बिहार आगमन
गांधी जी के बिहार पहुंचने पर मुजफ्फरपुर के कमिश्नर ने गांधी जी को वापस लौटने का आदेश दिया किंतु गांधी जी ने इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया और अंततः वे चंपारण पहुंचे । गांधी जी के आगमन से किसानों में नया उत्साह आया जबकि सरकार की चिंता बढ़ने लगी और तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट W.B. हेकॉक ने उन पर धारा 144 के तहत मुकदमा दायर कर अंग्रेजी कानून तोड़ने का आरोप लगाया ।
गांधी जी ने आरोपों को स्वीकार कर सविनय अवज्ञा का प्रयोग किया । गांधीजी की लोकप्रियता तथा विशाल जन समर्थन के कारण सरकार को न केवल मुकदमा वापस लेना पड़ा बल्कि उन्हें स्वतंत्र जांच के अधिकार भी दिए । जांच के क्रम में गांधीजी ने अपने सहयोगी के साथ गांव-गांव जाकर किसानों की स्थिति तथा हालात को समझने का प्रयास किया । इसी बीच मामले की जांच हेतु सरकार ने F.G. स्लाई की अध्यक्षता में “चंपारण एग्रेरियन कमेटी” का गठन किया जिसमें गांधी जी को भी सदस्य बनाया गया । इस समिति की सिफारिश के आधार पर कृषकों के पक्ष में निम्न कदम उठाएं गए-
- बिहार में तिनकठिया प्रणाली को समाप्त किया गया ।
- इस आंदोलन के बाद किसानों को नील की खेती से आजाद किया गया ।
- किसानों से की गई अवैध वसूली का 25% हिस्सा लौटाया गया ।
- बड़े हुए लगान का 1/4 हिस्सा छोड़ दिया गया ।
चंपारण आंदोलन की आलोचना
चंपारण आंदोलन के क्रम में गांधी जी की आलोचना इस बात पर होती है कि उन्होंने वसूली गई राशि का शत-प्रतिशत वापस लौटाने की मांग क्यों नहीं की? इस संबंध में गांधी जी का कहना था कि 25% वापसी भी बागान मालिकों की हार थी । यद्यपि किसान समस्या हेतु उपरोक्त उपाय अपर्याप्त थी फिर भी शांतिपूर्ण जन विरोध के माध्यम से सरकार से कुछ मांगे मनवाना एक बड़ी उपलब्धि थी ।
चंपारण आंदोलन का महत्व
- राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि इस आंदोलन द्वारा राष्ट्र ने अपना पहला पाठ सिखा और सत्याग्रह का पहला आधुनिक उदाहरण प्राप्त हुआ ।
- इस आंदोलन के माध्यम से पहली बार किसान समस्या को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया गया ।
- शोषणकारी तथा अन्यायपूर्ण व्यवस्था के प्रतिरोध हेतु सत्याग्रह एवं अहिंसा का प्रयोग हुआ ।
- किसान समस्या के समाधान हेतु राष्ट्रीय नेताओं का सहयोग प्राप्त हुआ ।
- इस आंदोलन से प्रेरित होकर कालांतर में खेड़ा, अवध जैसे अनेक किसान आंदोलन हुए ।
- किसानों की समस्या के समाधान हेतु तत्कालीन भारत की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक दल कांग्रेस की सक्रियता बढ़ी ।
- इस आंदोलन के बाद रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा गांधी जी को महात्मा की उपाधि दी गयी ।
- आंदोलन के दौरान आम जनमानस तथा कृषकों में गांधीजी के प्रति विश्वास बढ़ा ।
- चंपारण में हुए आंदोलन के दौरान सर्वप्रथम सविनय अवज्ञा तथा सत्याग्रह का सफल प्रयोग हुआ ।
- इस आंदोलन के माध्यम से लोगों को विकट तथा विपरित परिस्थितियों में भी धैर्य और साहस से साथ कार्य करने की प्रेरणा मिली ।
चंपारण सत्याग्रह- वर्तमान प्रासंगिकता
एक ओर जहां 2017 में चंपारण की 100 वीं वर्षगांठ मनाई गयी वहीं दूसरी ओर देश के कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं तथा कृषि अलाभकर बनती जा रही है। सरकार के आंकड़े के अनुसार 40% कृषक अपनी खेती छोड़ने हेतु तैयार है जैसा सदी के दूसरे दशक में कृषक नील की खेती छोड़ना चाहते थे ।
- उस समय भी किसानों के पास कोई विकल्प नहीं था आज भी अनेक किसानों के सामने कोई विकल्प नहीं है ।
- उस समय सरकार द्वारा लाए गए कानून के विरोध में किसान द्वारा आंदोलन किया गया जिसके फलस्वरूप तत्कालीन सरकार को कानून को समाप्त करना पड़ा । वर्तमान समय में भी किसानों द्वारा आंदोलन किया गया और अंतत: सरकार को कृषि कानून वापस लेना पड़ा ।
- इसी क्रम में भारत उस समय गुलाम था जबकि आज आजाद है। उस समय भी कृषि बाजारवादी ताकतों द्वारा निर्धारित होती थी तथा वर्तमान उदारीकरण एवं पूंजीवाद के समय में भी इनका योगदान महत्वपूर्ण है ।
- वास्तव में चंपारण आंदोलन में गांधीजी का संघर्ष वर्तमान में भी देश में दिखता है क्योंकि किसानों की स्थिति वही की वही है। अंतर केवल यह है कि देश का शासन का बदला तथा कृषि का स्वरूप बदला ।
अतः कहा जा सकता है कि वर्तमान में गांधीजी का सत्याग्रह आज भी प्रासंगिक है आवश्यकता इस बात कि है कि कृषि प्रधान देश भारत में व्यवस्था में व्यापक बदलाव लाया जाए जो कृषि तथा कृषकों की समस्याओं को हल कर कृषि को लाभकारी बनाने की दिशा में प्रयास करें।
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