NCERT आधारित नोटस की शृंखला में आज हम कक्षा 12 के भारतीय इतिहास के कुछ विषय-। पुस्‍तक के अध्‍याय-1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ-हड़प्पा सभ्यता

NCERT-भारतीय इतिहास के कुछ विषय

भारतीय इतिहास के कुछ विषय-।

ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ-हड़प्पा सभ्यता

NCERT आधारित नोटस की शृंखला में आज हम कक्षा 12 के भारतीय इतिहास के कुछ विषय-। पुस्‍तक के अध्‍याय-1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ-हड़प्पा सभ्यता संबंधित महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों को देखनेवाले हैं । यहां पर केवल उन तथ्‍यों को लिया गया है जो किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के लिए महत्‍वपूर्ण है। ज्‍यादा जानकारी के लिए आप NCERT की अधिकारिक वेवसाइट पर जाकर संपूर्ण पुस्‍तक को पढ़ सकते हैं।  

इससे संबंधित वन लाइनर महत्‍वपूर्ण तथ्‍य को आप हमारे वेवसाइट http://www.gkbucket.com पर जा कर पढ़ सकते है और हमारे Youtube channel https://youtu.be/w3P61WWB5YA पर जा कर देख सकते हैं।

 

हड़प्पाई मुहर संबंधित महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

  • संभवतः हड़प्पा अथवा सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु है।
  • सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई गई मुहर।
  • इस पर पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा एक ऐसी लिपि के चिह्न उत्कीर्णित हैं जिन्हें अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।

पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में करते हैं ?

  • पुरावस्तुओं के ऐसे समूह करते हैं जो एक विशिष्ट शैली के होते हैं और सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र तथा काल-खंड से संबद्ध पाए जाते हैं। जैसे हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ विशिष्ट पुरावस्तुओं में मुहरें, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पकी हुई ईंटें सम्मिलित हैं।

हड़प्पा सभ्यता के संदर्भ विशिष्ट पुरावस्तुएं किन स्‍थानों से मिली है?

  • अफ़गानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों से ।

हड़प्‍पा सभ्यता का काल निर्धारण क्‍या किया गया है?

  • इसका काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।

विकसित हड़प्‍पा संस्‍कृति से क्‍या तात्‍पर्य है ?

  • हड़प्‍पा क्षेत्र में हड़प्‍पा सभ्‍यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।

आरंभिक तथा विकसित हड़प्‍पा संस्‍कृतियों के संदर्भ में थार रेगिस्तान से लगा हुआ पाकिस्तान का रेगिस्तानी क्षेत्र क्‍या कहलाता है ?

  • चोलिस्तान

हड़प्‍पा क्षेत्र में हड़प्‍पा सभ्‍यता से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिनकी प्रमुख विशेषता क्‍या थी

  • विशिष्ट मृदभाण्ड शैली
  • इसके अलावा इनके संदर्भ में कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य भी मिलते हैं।
  • बस्तियाँ आमतौर पर छोटी होती थीं और इनमें बड़े आकार की संरचनाएँ लगभग न के बराबर थीं।

निर्वाह के तरीके

  • हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद और जानवरों जिनमें मछली भी शामिल है, से प्राप्त भोजन करते थे।
  • हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों में गेहूँ, जौ, दाल, सफ़ेद चना तथा तिल शामिल हैं। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से प्राप्त हुए थे। चावल के दाने अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं।
  • हड़प्पा स्थलों से मिली जानवरों की हड्डियों में मवेशियों, भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर की हड्डियाँ शामिल हैं। अध्ययनों से संकेत मिलता है कि ये सभी जानवर पालतू थे।
  • जंगली प्रजातियों जैसे वराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं।

कृषि प्रौद्योगिकी 

  • मुहरों पर किए गए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियाँ यह इंगित करती हैं कि वृषभ के विषय में जानकारी थी और इस आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था।
  • चोलिस्तान के कई स्थलों और बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं।
  • कालीबंगन (राजस्थान) नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है । इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते हुए विद्यमान थे जो दर्शाते हैं कि एक साथ दो अलग-अलग फ़सलें उगाई जाती थीं।
  • अधिकांश हड़प्पा स्थल अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं। जहाँ संभवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफ़गानिस्तान में शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं।
  • धौलावीरा (गुजरात) में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवतः कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था।

महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

  • हडप्‍पा सबसे पहले खोजा गया स्थल था जबकि मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है। हालाँकि हड़प्पा सबसे पहले खोजा गया स्थल था लेकिन इसे ईंट चुराने वालों ने बुरी तरह से नष्ट कर दिया था। इसके विपरित मोहनजोदड़ो कहीं बेहतर संरक्षित था।
  • अलेक्जेंडर कनिंघम को सामान्यतः भारतीय पुरातत्व का जनक भी कहा जाता है।

मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहर कैसे?  

  • मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केंद्र था तथा हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केंद्रों का विकास माना जाता है।
  • मोहनजोदड़ो बस्ती दो भागों में विभाजित है, एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया और दूसरा कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्‍वविदों ने इसे क्रमशः दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है।
  • दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनी थीं। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था।निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था।
  • इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। एक बार चबूतरों के यथास्थान बनने के बाद शहर का सारा भवन निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन।
  • पकी ईंटे जो निश्चित अनुपात की होती थीं, जहाँ लंबाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी और दोगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटें सभी हड़प्पा बस्तियों में प्रयोग में लाई गई थीं।

नालों का निर्माण

  • हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक जल निकास प्रणाली थी।
  • निचले शहर में सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था।

दुर्ग

  • दुर्ग पर हमें ऐसी संरचनाओं के साक्ष्य मिलते हैं जिनका प्रयोग संभवतः विशिष्ट सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए किया जाता था। इनमें एक मालगोदाम-एक ऐसी विशाल संरचना है जिसके ईंटों से बने केवल निचले हिस्से शेष हैं, जबकि ऊपरी हिस्से जो संभवतः लकड़ी से बने थे, बहुत पहले ही नष्ट हो गए थे और विशाल स्नानागार सम्मिलित हैं।
  • अधिकांश हड़प्पा बस्तियों में एक छोटा ऊँचा पश्चिमी तथा एक बड़ा लेकिन निचला पूर्वी भाग है।
  • धौलावीरा तथा लोथल (गुजरात) में पूरी बस्ती किलेबंद थी। 

गृह स्थापत्य

  • मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। इनमें से कई एक आँगन पर केंद्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने थे।
  • लोगों द्वारा अपनी एकांतता को महत्‍व दिया गया और भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़‌कियाँ नहीं हैं। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आँगन का सीधा अवलोकन नहीं होता है।
  • घर में ईंटों के फ़र्श से बना अपना स्नानघर था जो सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थीं। कुछ घरों में सीढ़ियों, कुएँ के अवशेष भी मिले हैं।
  • जल निकास प्रणालियाँ केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थीं बल्कि ये कई छोटी बस्तियों में भी मिली थीं। उदाहरण के लिए, लोथल में आवासों के निर्माण के लिए जहाँ कच्ची ईंटों का प्रयोग हुआ था, वहीं नालियाँ पकी ईंटों से बनाई गई थीं।
  • नालियों के विषय में मैके का कथन है कि “निश्चित रूप से यह अब तक खोजी गई सर्वथा संपूर्ण प्राचीन प्रणाली है।”

अभ्‍यास प्रश्‍न – मोहनजोदड़ो के कौन से वास्तुकला संबंधी लक्षण नियोजन की ओर संकेत करते हैं?

 

शवाधान

किसी संस्कृति विशेष में रहने वाले लोगों के बीच सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताओं के का पता लगाने के लिए कई विधियों का प्रयोग करते हैं जिनमें शवाधानों, वस्‍तुओं का उपयोग का अध्ययन है।

  • हड़प्पा स्थलों से कुछ कब्रों में मृदद्माण्ड तथा आभूषण मिले हैं जो संभवतः एक ऐसी मान्यता की ओर संकेत करते हैं जिसके अनुसार इन वस्तुओं का मृत्योपरांत प्रयोग किया जा सकता था।
  • पुरुषों और महिलाओं, दोनों के शवाधानों से आभूषण मिले हैं।
  • कहीं-कहीं पर मृतकों को ताँबे के दर्पणों के साथ दफ़नाया गया था।

परंतु कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि हड़प्पा सभ्यता के निवासियों का मृतकों के साथ बहुमूल्य वस्तुएँ दफ़नाने में विश्वास नहीं था जैसे मिस्र के विशाल पिरामिडों में कुछ राजकीय शवाधान थे जहाँ बहुत बड़ी मात्रा में धन-संपत्ति दफ़नाई गई थी।

 

उपयोग की जानेवाले वस्तुएं

  • रोजमर्रा के उपयोग की वस्तुएँ जैसे चक्कियाँ, मृदभाण्ड, सूइयाँ, झाँवा आदि जो पत्थर अथवा मिट्टी जैसे सामान्य पदार्थों से आसानी से बनाया जा सकती है सामान्य रूप से बस्तियों में सर्वत्र पाई गई हैं।
  • पुरातत्वविद उन वस्तुओं को कीमती मानते हैं जो दुर्लभ हों अथवा मँहगी, स्थानीय स्तर पर अनुपलब्ध पदार्थों से अथवा जटिल तकनीकों से बनी हों।
  • फ़यॉन्स (घिसी हुई रेत अथवा बालू तथा रंग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पका कर बनाया गया पदार्थ) के छोटे पात्र संभवतः कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था।
  • ऐसी दुर्लभ वस्तुएँ सामान्यतः मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसी बड़ी बस्तियों में केंद्रित हैं और छोटी बस्तियों में ये विरले ही मिलती हैं। सोना भी दुर्लभ तथा संभवतः आज की तरह कीमती था।

अभ्‍यास प्रश्‍न- पुरातत्वविद किसी संस्कृति विशेष में रहने वाले लोगों के बीच सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं ।

 

शिल्प-उत्पादन

चन्हुदड़ो जो मोहनजोदड़ो की तुलना में एक बहुत छोटी बस्ती है जो लगभग पूरी तरह से शिल्प-उत्पादन में संलग्न थी। शिल्प कार्यों में मनके बनाना, शंख की कटाई, धातुकर्म, मुहर निर्माण तथा बाट बनाना सम्मिलित थे।

मनकों के निर्माण में प्रयुक्त पदार्थ

  • कार्नीलियन (सुंदर लाल रंग का)
  • जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर
  • ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ
  • शंख, फ़यॉन्स और पकी मिट्टी।

शिल्‍प कार्य हेतु माल प्राप्त करने संबंधी नीतियाँ

शिल्प उत्पादन के लिए कई प्रकार के कच्चे माल का प्रयोग होता था जिसमें कुछ स्थानीय स्तर पर उपलब्ध थे तो कुछ बाहर से मँगाने पड़ते थे। बैलगाड़ियों के मिट्टी से बने खिलौनों के प्रतिरूप संकेत करते हैं कि यह स्थल मार्गों द्वारा परिवहन का एक महत्वपूर्ण साधन था। हड़प्पावासी  द्वारा शिल्प-उत्पादन हेतु माल प्राप्त करने के लिए कई तरीके अपनाते थे जिसे निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है।

बस्तियों की स्‍थापना

  • इन्‍होंने नागेश्वर और बालाकोट में जहाँ शंख आसानी से उपलब्ध था, बस्तियाँ स्थापित कीं।ये शंख से बनी वस्तुओं जिनमें चूड़ियाँ, करछियाँ तथा पच्चीकारी की वस्तुएँ के निर्माण के विशिष्ट केंद्र थे ।
  • सुदूर अफ़गानिस्तान में शोर्तुघई, जो अत्यंत कीमती माने जाने वाले नीले रंग के पत्थर लाजवर्द मणि के सबसे अच्छे स्रोत के निकट स्थित था
  • लोथल जो कार्नीलियन (गुजरात में भड़ौच), सेलखड़ी (दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से) और धातु (राजस्थान से) के स्रोतों के निकट स्थित था।

अभियान भेजना

  • कच्चा माल प्राप्त करने की एक अन्य नीति थी, राजस्थान के खेतड़ी (ताँबे के लिए) तथा दक्षिण भारत (सोने के लिए) जैसे क्षेत्रों में अभियान भेजना।
  • इन अभियानों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के साथ संपर्क स्थापित किया जाता था। इन इलाकों में यदा-कदा मिलने वाली हड़प्पाई पुरावस्तुएँ ऐसे संपर्कों की संकेतक हैं।
  • खेतड़ी क्षेत्र में मिले साक्ष्यों को पुरातत्वविदों ने गणेश्वर-जोधपुरा संस्कृति का नाम दिया है। इस संस्कृति के विशिष्ट मृदभाण्ड हड़प्पाई मृदभाण्डों से भिन्न थे तथा यहाँ ताँबे की वस्तुओं की असाधारण संपदा मिली थी। ऐसा संभव है कि इस क्षेत्र के निवासी हड़प्पा सभ्यता के लोगों को ताँबा भेजते थे।

सुदूर क्षेत्रों से संपर्क

  • पुरातात्विक खोजें एवं अध्‍ययन इंगित करती हैं कि ताँबा संभवतः अरब प्रायद्वीप के दक्षिण-पूर्व छोर पर स्थित ओमान से भी लाया जाता था। ओमानी ताँबे तथा हड़प्पाई पुरावस्तुओं, दोनों में निकल के अंश मिले हैं जो दोनों के साझा उद्भव की ओर संकेत करते हैं। इसी क्रम में मेसोपोटामिया के स्थलों से मिले ताँबे में भी निकल के अंश मिले हैं।
  • मेसोपोटामिया के लेख से दिलमुन (संभवतः बहरीन द्वीप), मगान (संभवत: ओमान) तथा मेलुहा (संभवतः हड़प्पाई क्षेत्र) नामक क्षेत्रों से संपर्क की जानकारी मिलती है। यह लेख मेलुहा से प्राप्त विभिन्‍न उत्‍पादों जैसे कार्नीलियन, लाजवर्द मणि, ताँबा, सोना तथा विविध प्रकार की लकड़ियाँ का उल्लेख करते हैं।
  • मेसोपोटामिया के लेख मेलुहा को नाविकों का देश कहते हैं। इसके अतिरिक्त हम मुहरों पर जहाजों तथा नावों के चित्रांकन पाते हैं।

अभ्‍यास प्रश्‍न- शिल्‍प संबंधी उत्‍पादन हेतु कच्‍चे माल की प्राप्ति हेतु हड़प्‍पावासी किन नीतियों का अनुसरण करते थे। टिप्‍पणी करें।

 

एक रहस्यमय लिपि- महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

  • हडप्‍पा के अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं तथा सबसे लंबे अभिलेख में लगभग 26 चिह्न हैं।
  • यह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी है, पर निश्चित रूप से यह वर्णमालीय (जहाँ प्रत्येक चिह्न एक स्वर अथवा व्यंजन को दर्शाता है) नहीं थी क्योंकि इसमें चिह्नों की संख्या कहीं अधिक है- लगभग 375 से 400 के बीच।
  • ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर चौड़ा अंतराल है और बाईं ओर यह संकुचित है जिससे लगता है कि उत्कीर्णक ने दाईं ओर से लिखना आरंभ किया और बाद में बाईं ओर स्थान कम पड़ गया।
  • यह लिपि विभिन्न प्रकार की वस्तुओं जैसे मुहरें, ताँबे के औजार, मर्तबानों के अँवठ, ताँबे तथा मिट्टी की लघुपट्टिकाएँ, आभूषण, अस्थि छड़ें और यहाँ तक कि एक प्राचीन सूचना पट्ट पर लिखी मिली है।

बाट

  • बाट सामान्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे ।
  • इन बाटों के निचले मानदंड द्विआधारी (1, 2, 4, 8, 16,….) थे जबकि ऊपरी मानदंड दशमलव प्रणाली का अनुसरण करते थे।

प्राचीन सत्ता की संरचना

हड़प्पाई समाज में जटिल फैसले लेने और उन्हें कार्यान्वित करने के संकेत मिलते हैं। उदाहरण के लिए, हड़प्पाई पुरावस्तुओं में असाधारण एकरूपता को ही लें, जैसा कि मृदभाण्डों, मुहरों, बाटों तथा ईंटों से स्पष्ट है।

  • ईंटें, जिनका उत्पादन स्पष्ट रूप से किसी एक केंद्र पर नहीं होता था, जम्मू से गुजरात तक पूरे क्षेत्र में समान अनुपात की थीं।
  • हड़प्‍पा सभ्‍यता में अलग-अलग कारणों से बस्तियाँ विशेष स्थानों पर आवश्यकतानुसार स्थापित की गई थीं।
  • इसके अलावा ईंटें बनाने और विशाल दीवारों तथा चबूतरों के निर्माण के लिए श्रम संगठित किया गया था।

प्रश्‍न है कि इन सभी क्रियाकलापों को कौन संगठित करता था? कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार हड़प्पाई समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी जबकि कुछ यह मानते हैं कि यहाँ कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि के अपने अलग-अलग राजा होते थे।

कुछ पुरातत्‍वविदों का यह तर्क हैं कि यह एक ही राज्य था जैसा कि नियोजित बस्तियों के साक्ष्यों, ईंटों के आकार में निश्चित अनुपात, तथा बस्तियों के कच्चे माल के स्रोतों के समीप संस्थापित होने से स्पष्ट है। अभी तक की स्थिति में यह परिकल्पना सबसे युक्तिसंगत प्रतीत होती है क्योंकि यह संभव नहीं लगता कि पूरे के पूरे समुदायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए तथा कार्यान्वित किए जाते होंगे।

अभ्‍यास प्रश्‍न- क्‍या आप इस बात से सहमत है कि एक विशाल क्षेत्र में फैली हड़प्‍पा सभ्‍यता एक प्रशासनिक इकाई के द्वारा संचालित थी। टिप्‍पणी करें । 

 

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