पटना कलम

पटना कलम

पटना कलम

पटना कलम चित्रकला की एक विशिष्ट शैली है जिसका विकास क्रम 1750 से 1925 तक पटना तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में हुआ । ब्रिटिश कला प्रेमियों द्वारा इस कला के संरक्षण एवं विकास में योगदान देने के कारण इसे इंडो-ब्रिटिश शैली भी कहा जाता है ।

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ऐतिहसिक पृष्ठभमि

शांहजहां के शासनकाल के बाद से मुगल दरबार में चित्रकला का ह्रास होने लगा तथा औरंगजेब का शासनकाल आते-आते चित्रकला अत्यंत उपेक्षित हो गयी। फलतः 18वीं सदी के आस-पास वे सभी चित्रकार जो दिल्ली दरबार के गौरव थे आजीविका हेतु देश के विभिन्न क्षेत्रों में पलायित हुए । इसी क्रम में कुछ चित्रकार 1760 ई. के आस-पास पटना तथा आस-पास के क्षेत्रों में आकर बसे तथा इन्होंने अपनी कला को एक नए क्षेत्रीय रूप में विकसित किया जिसे पटना कलम शैली की संज्ञा दी गयी ।

 

पटना कलम शैली

पटना कलम शैली चित्रकला का एक क्षेत्रीय रूप है जो बिना किसी राजाश्रय के फली-फुली । इस समय पाटलिपुत्र एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र के रूप में उभर रहा था तथा इस कला के संरक्षक तथा खरीददार तत्कालीन नवधनाढय भारतीय तथा ब्रिटिश कला प्रेमी थे । पटना कलम के चित्र लघु चित्र की श्रेणी में रखे जाते हैं जिनको कागज, हाथी दाँत पर बनाया जाता था । कला की विषय-वस्तु तत्कालीन बिहार की सामजिक, राजनीतिक, आर्थिक जीवन से संबंधित होती थी।

उल्लेखनीय है कि इस शैली के कलाकारों के पूर्वज मुगल शैली के सुप्रसिद्ध चित्रकार थे। अतः इस शैली के प्रारंभिक चित्रों पर मुगल शैली का प्रभाव दिखता है। कालांतर में इस शैली में स्थानीय तथा यूरोपीय प्रभाव भी शामिल हुआ । इस प्रकार पटना कलम शैली में मुगल, यूरोपीय तथा स्थानीय चित्रकला की विशेषताएं मिश्रित रूप में झलकती है फिर भी स्थानीय विशेषताए, चित्रों के रेखांकन विधि, रंगों का चयन एवं रंगने की विधि इस कला को विशिष्ट बनाती है । कालांतर में इन चित्रों की प्रस्तुति में सादगी एवं विषय वस्तु में सरलता तथा मौलिकता आती गयी ।

 

पटना कलम की विशेषताएं

  • पटना कलम के चित्र लघुचित्र की श्रेणी में आते हैं जिन्हें अधिकतर कागज, कहीं-2 हाथी दांत, चमड़े, शीशा आदि पर भी बनाया गया है।
  • इस शैली में मुगल शैली की तरह भव्यता का अभाव था तथा इसकी विषय-वस्तु राजे-रजवाड़े न होकर सामान्यतः जनसाधारण के दैनिक जीवन का चित्रण है जैसे-लकड़ी काटता बढ़ई, मछली बेचती औरत, लोहार, सुनार, पालकी उठाए कहार, खेत जोतता किसान आदि ।
  • इस शैली की मुख्य विशेषता इसका सादगीपूर्ण है जिसमें चटख रंगों के स्थान पर सौम्य एवं शांत रंगों का उपयोग हुआ है।
  • प्राकतिक स्रोतों से रंग तैयार होता था जैसे लाह से लाल रंग,कालिख से काला, मिट्टी से सफेद, नील से नीला इत्यादि।
  • चित्र सीधे कागज पर ब्रश से बनाए एवं रंगे जाते थे। बारीक कामों हेतु एक या दो बालों वाले ब्रश का उपयोग करते थे ।
  • सामान्य जनजीवन के अलावा अलावा पशु-पक्षियों, फलों का भी चित्रण हुआ है । पटना शैली के मुख्यतः 3 प्रकार के चित्र है- व्यक्ति विशेष, विवाह, पर्व त्यौहार तथा जीव-जन्तुओं के चित्र ।
  • पटना कलम में पृष्ठभूमि एवं लैंडस्केप का ज्यादा प्रयोग नहीं होने के कारण चित्र जीवंत प्रतीत होते हैं।

 

पटना कलम में महादेव लाल द्वारा “रागिनी  गांधारी” तथा यमुना प्रसाद द्वारा “बेगमों की शराबखोरी” तथा शिवलाल द्वारा “ मुस्लिम निकाह” चित्र अत्यंत महत्वपूर्ण कलाकृतियां हैं। अग्रणी चित्रकारों में सेवकराम, हुलासराम, ईश्वर प्रसाद, फकीरचंद, जयराम दास,नित्यानंद लाल, श्याम बिहारी प्रमुख हैं। चूंकि इस शैली के अधिकांश चित्रकार पुरुष थे इस कारण इसे पुरुषों की चित्रकला भी कहा जाता है।

 

कला की यह शैली लगभग 1.5 दशक तक प्रचलित रही लेकिन 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में इस शैली का पतन आरंभ हो गया क्योंकि इस समय तक कोई कला संरक्षक नहीं रहा तथा अनेक कलाकार संरक्षकहीन हो गए । इस कारण रोजी-रोटी हेतु वे एक-एक कर अन्य सेवा, व्यवसाय आदि में लग गए । कुछ कलाकार अन्य क्षेत्रों की ओर प्रवास कर गए और यह कला विलुप्त होती गयी । ईश्वरी प्रसाद वर्मा भारत में पटना कलम शैली के अंतिम चित्रकार माने जाते हैं इनकी मृत्यु के साथ ही इस कला शैली का भी अंत हो गया। यद्यपि धन एवं आश्रय के अभाव में यह कला शैली नष्ट हो गयी तथापि इसके चित्र बिहार की गौरवमयी कला-परम्परा की अमूल्य धरोहर के रूप में आज भी पटना संग्रहालय, कोलकात्ता संग्रहालय, कला महाविद्यालय तथा विदेशों में उपलब्ध है ।

 

आवश्यकता इस बात की है कि जिस प्रकार से बिहार सरकार द्वारा मधुबनी पेंटिंग तथा अन्य कलाओं  को प्रोत्साहन दिया जा रहा है उसी प्रकार से इस कला को भी संरक्षित करने का प्रयास किया जाना चाहिए क्योंकि अन्य कला शैलियों की भांति यह भी बिहार की गौरवमयी कला की अमूल्य धरोहर है।

बिहार लोक सेवा आयोग संबंधी अन्‍य महत्‍वपूर्ण लेख को आप हमारे वेवसाइट http://www.gkbucket.com पर भी पढ़ सकते हैं।

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