भारतीय इतिहास के कुछ विषय
NCERT, Class-12 भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग-2 पर आधारित पुस्तक के अध्याय- “यात्रियों के नज़रिए समाज के बारे में उनकी समझ” संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों को देखनेवाले हैं । यहां पर प्रतियोगी परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण तथ्यों को लिया गया है। ज्यादा जानकारी के लिए आप NCERT की अधिकारिक वेवसाइट पर जाकर संपूर्ण पुस्तक को पढ़ सकते हैं।
यात्रियों के नज़रिए
- विजयनगर शहर के सबसे महत्त्वपूर्ण विवरणों हेरात से आए किस एक राजनयिक द्वारा प्राप्त होता है- अब्दुर रज्जाक समरकंदी
- ग्यारहवीं शताब्दी में भारत आनेवाला अलबिरूनी कहां से आया था –उज्बेकिस्तान, ख्वारिज्म
- चौदहवीं शताब्दी में भारत आनेवाले इब्नबतूता कहां का निवासी था- मोरक्को
- सत्रहवीं शताब्दी में भारत आया यात्री फ्रांस्वा बर्नियर कहां का निवासी था- फ्रांस
- 1620 के दशक में भारत आया यात्री जो भारत की यात्रा के दौरान कुछ समय के लिए सन्यासी भी बन गया था- महमूद वली बल्खी
- 1740 के दशक में उत्तर भारत की यात्रा पर आए यात्री जो भारत से निराश हुए घृणा भी करने लगे क्योंकि वे भारत में अपने लिए एक उत्सवीय स्वागत की आशा कर रहे थे, और वह नहीं हुआ- शेख अली हाजिन
- भारतीय ग्रंथों को यूरोपीय भाषाओं में अनुवादित करनेवाला मध्यकालीन यात्री कौन था- सुइट रॉबर्टा नोबिली
- मध्यकालीन यात्री जिसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा-दुआर्ते बरबोसा
- वह मध्यकालीन यात्री जिसने कम से कम छह बार भारत की यात्रा की और विशेष रूप से भारत की व्यापारिक स्थितियों से बहुत प्रभावित था और उसने भारत की तुलना ईरान और ऑटोमन साम्राज्य से की- फ्रांसीसी जौहरी ज्यौं बैप्टिस्ट तैवर्नियर
- भारत की यात्रा पर आए मध्यकालीन यूरोपीय यात्री जो यूरोप वापस नहीं गए और भारत में ही बस गए-इतालवी चिकित्सक मनुकी
- फ्रांस का रहने वाला एक चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक तथा एक इतिहासकार जो वह 1656 से 1668 तक भारत में बारह वर्ष तक रहा-फ्रांस्वा बर्नियर
- मुग़ल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा-पहले सम्राट शाहजहाँ के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में, और बाद में मुगल दरबार के एक आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में।
- किसने अपनी यात्रा के दौरान केरल में कालीकट बंदरगाह पर बसे लोगों को देखकर उन लोगों को उसने एक विचित्र देश बताया- अब्दुर रज्जाक
- ट्रैवल्स इन द मुग़ल एम्पायर किसका लिखा ग्रंथ है- बर्नियर
- इब्नबतूता ने किस भारतीय वानस्पतिक उपज का वर्णन विशेष रूप से किया–नारियल और पान
- इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कृषि के इतना अधिक उत्पादनकारी होने का क्या कारण था जिससे वर्ष में 2 फसलों को लेना संभव होता था- मिट्टी का उपजाऊपन
- इब्नबतूता ने किस भारतीय शहर को विशाल आबादी वाला भारत का सबसे बड़ा शहर बताया- दिल्ली, इनके अनुसार दौलताबाद, महाराष्ट्र भी बड़ा था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था।
- संभवतः एकमात्र ऐसा यात्री एवं इतिहासकार जो राजकीय कारखानों की कार्यप्रणाली का विस्तृत विवरण प्रदान करता है-बर्नियर
अलबरुनी
- अल-बिरूनी कई भाषाओं का ज्ञाता था जिनमें सीरियाई, फ़ारसी, हिब्रू तथा संस्कृत शामिल हैं। अरबी में लिखी गई अल-बिरूनी की कृति किताब उल हिन्द की भाषा सरल और स्पष्ट है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीमिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर 80 अध्यायों में विभाजित है।
इब्नबतूता का रिहला
- मोरक्को के यात्री इब्नबतूता द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृत्तांत जिसे रिहला कहा जाता है। मुहम्मद बिन तुग़लक ने उसकी विद्वता से प्रभावित हो उसे दिल्ली का क़ाजी या न्यायाधीश नियुक्त किया। वह इस पद पर कई वर्षों तक रहा लेकिन कुछ कारणों से उसे कारागार में कैद कर दिया गया हांलाकि बाद में सुल्तान और उसके बीच की गलतफहमी दूर होने के बाद उसे राजकीय सेवा में पुनर्स्थापित किया गया ।
इब्नबतूता-भारत की डाक व्यवस्था
- भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था है। अश्व डाक व्यवस्था जिसे उलुक कहा जाता है, हर चार मील की दूरी पर स्थापित राजकीय घोड़ों द्वारा चालित होती है।
- पैदल डाक व्यवस्था के प्रति मील तीन अवस्थान होते हैं इसे दावा कहा जाता है, और यह एक मील का एक-तिहाई होता है।
- पैदल डाक व्यवस्था अश्व डाक व्यवस्था से अधिक तीव्र होती है; और इसका प्रयोग अकसर खुरासान के फलों के परिवहन के लिए होता है जिन्हें भारत में बहुत पसंद किया जाता है।
इब्नबतूता के अनुसार भारतीय कपड़ों में सूती कपड़ा, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक मांग थी । इनके अनुसार महीन मलमल की कई किस्में इतनी मंहगी थी कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा धनाढ्य ही पहन सकते थे।
बर्नियर मुग़लकालीन शहरों को “शिविर नगर” कहता है, जिसका आशय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे।
हिंदू
- “हिंदू” शब्द लगभग छठी-पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्रयुक्त होने वाले एक प्राचीन फ़ारसी शब्द, जिसका प्रयोग सिंधु नदी (Indus) के पूर्व के क्षेत्र के लिए होता था, से निकला था।
- अरबी लोगों ने इस फ़ारसी शब्द को जारी रखा और इस क्षेत्र को “अल-हिंद“ तथा यहाँ के निवासियों को “हिंदी” कहा।
- कालांतर में तुकों ने सिंधु से पूर्व में रहने वाले लोगों को “हिंदू“: उनके निवास क्षेत्र को “हिंदुस्तान” तथा उनकी भाषा को “हिंदवी” का नाम दिया।
- उपरोक्त से कोई भी शब्द लोगों की धार्मिक पहचान का द्योतक नहीं था। इस शब्द का धार्मिक संदर्भ में प्रयोग बहुत बाद की बात है।
17वीं सदी में मध्यकालीन भारत में आए किस यात्री ने भारत में गरीबों की दयनीय स्थिति का वर्णन करते हुए राज्य को उत्तरदायी ठहराते हुए कहा कि “कृषकों को इतना अधिक निचोड़ा जाता है कि पेट भरने के लिए उनके पास सूखी रोटी भी मुश्किल से बचती है।”पेलसर्ट नामक एक डच यात्री
भूमि का स्वामित्व
- बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था। उसका निजी स्वामित्व के गुणों में दृढ़ विश्वास था और उसने भूमि पर राजकीय स्वामित्व को राज्य तथा उसके निवासियों, दोनों के लिए हानिकारक माना।
- बर्नियर को यह लगा कि मुग़ल साम्राज्य में सम्राट सारी भूमि का स्वामी था जो इसे अपने अमीरों के बीच बाँटता था, और इसके अर्थव्यवस्था और समाज के लिए अनर्थकारी परिणाम होते थे। इस प्रकार का अवबोधन बर्नियर तक ही सीमित नहीं था बल्कि सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी के अधिकांश यात्रियों के वृत्तांतों में मिलता है।
- बर्नियर तर्क देता है कि राजकीय भूस्वामित्व के कारण भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें बढ़ोत्तरी के लिए दूरगामी निवेश के प्रति उदासीन थे।
- इस प्रकार, निजी भूस्वामित्व के अभाव ने “बेहतर” भूधारकों के वर्ग के उदय (जैसा कि पश्चिमी यूरोप में) को रोका जो भूमि के रखरखाव व बेहतरी के प्रति सजग रहते। इसी के चलते कृषि का समान रूप से विनाश, किसानों का असीम उत्पीड़न तथा समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर में अनवरत पतन की स्थिति उत्पन्न हुई है सिवाय शासक वर्ग के।
गरीब किसान
- बर्नियर भारतीय समाज को दरिद्र लोगों के समरूप जनसमूह से बना वर्णित करता है, जो एक बहुत अमीर तथा शक्तिशाली शासक वर्ग, जो अल्पसंख्यक होते हैं, के द्वारा अधीन बनाया जाता है।
- बर्नियर के अनुुुुसार भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं है।”गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र को भी कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था।
- प्रश्न उठता है कि क्या बर्नियर ने मुग़ल साम्राज्य को इस रूप में देखा इसका मात्र एक ही कारण राजकीय भूस्वामित्व को बताया।
- आश्चर्य की बात यह है कि एक भी सरकारी मुग़ल दस्तावेज़ यह इंगित नहीं करता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था। उदाहरण के लिए, सोलहवीं शताब्दी में अकबर के काल का सरकारी इतिहासकार अबुल फजल भूमि राजस्व को ‘राजत्व का पारिश्रमिक‘ बताता है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले की गई माँग प्रतीत होती है न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान।
बर्नियर के विवरणों का पश्चिमी विचारकों पर प्रभाव
- फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू ने बर्नियर के वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धांत को विकसित करने में किया, जिसके अनुसार एशिया (प्राच्य अथवा पूर्व) में शासक अपनी प्रजा के ऊपर निर्बाध प्रभुत्व का उपभोग करते थे, जिसे दासता और गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था।
- इस तर्क का आधार यह था कि सारी भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था तथा निजी संपत्ति अस्तित्व में नहीं थी। इस दृष्टिकोण के अनुसार राजा और उसके अमीर वर्ग को छोड़ प्रत्येक व्यक्ति मुश्किल से गुजर-बसर कर पाता था।
- 19वीं शताब्दी में कार्ल मार्क्स ने इस विचार को एशियाई उत्पादन शैली के सिद्धांत के रूप में और आगे बढ़ाया। उसने यह तर्क दिया कि भारत (तथा अन्य एशियाई देशों) में उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था। इससे एक ऐसे समाज का उद्भव हुआ जो बड़ी संख्या में स्वायत्त तथा (आंतरिक रूप से) समतावादी ग्रामीण समुदायों से बना था। इन ग्रामीण समुदायों पर राजकीय दरबार का नियंत्रण होता था
परंतु, ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था। 16वीं और 17वीं शताब्दी में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था। एक ओर बड़े ज़मींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे और दूसरी ओर “अस्पृश्य” भूमिविहीन श्रमिक। इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था जो किराए के श्रम का प्रयोग करता था और माल उत्पादन में संलग्न रहता था साथ ही अपेक्षाकृत छोटे किसान भी थे जो मुश्किल से ही निर्वहन लायक उत्पादन कर पाते थे।