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भारत चीन सीमा तनाव एवं सैन्‍य गतिरोध

भारत चीन सीमा तनाव एवं सैन्‍य गतिरोध को हल करने हेतु 8 सितंबर 2022 को भारत एवं चीन के मध्‍य कोर कमांडर स्तर की बैठक के 16वें दौर में बनी सहमति के अनुसार भारतीय और चीनी सैनिकों ने गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स (पीपी-15) क्षेत्र में समन्वित और योजनाबद्ध तरीके से अलग शुरू कर दिया तो यह संभावना बनी थी कि न केवल सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और स्थिरता बहाल होगी और  कुछ दिनों बाद होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति दोनों के मध्‍य द्विपक्षीय वार्ता होेगी ।

हांलाकि शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बातचीत के नहीं हो पायी जिसके पीछे विश्‍लेषकों के अनुसार अनेक कारण हो सकते हैं । उल्‍लेखनीय है कि कोर कमांडर स्तर की बैठक के 16वें दौर में बनी सहमति के अनुसार गोगरा-हॉटस्प्रिंग्स (पीपी-15) क्षेत्र में डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया को सहमति  मिली लेकिन डेमचोक और देपसांग क्षेत्र पर अभी भी गतिरोध कायम है और चीन इन क्षेत्रों से हटने से  से इनकार करता रहा है।

दोनों नेताओं के बीच परस्पर वार्ता नहीं होने के निहितार्थ

  • भारत और चीन दोनों ने वर्तमान में जारी भारत चीन सीमा तनाव एवं सैन्‍य गतिरोध का समाधान निकालने का एक अच्‍छा अवसर गंवा दिया। उल्‍लेखनीय है कि इसके पूर्व हुए डोकलाम विवाद का हल 2017 में हैम्बर्ग में जी-10 शिखर वार्ता के दौरान अनौपचारिक बातचीत से ही निकला था और आशा थी कि इस वार्ता से गलवान घाटी के बाद उत्‍पन्‍न हुए सीमा पर उत्‍पन्‍न गतिरोध एवं तनाव का हल होगा ।
  • समरकंद में मोदी-जिनपिंग के बीच वार्ता नहीं होना यह स्‍पष्ट करता है कि गलवान घाटी के हिंसक संघर्ष के बाद दोनों देशों के परस्पर संबंधों में जो सुधार की गुंजाइश दिख रही थी फिलहाल उस पर ग्रहण लग गया है।
  • विश्‍लेषकों के अनुसार भारत की कई नीतियां अमेरिका की चीन विरोधी नीतियों से मेल खाती है एवं दोनों के बीच वार्ता होती भी तो कोई सकारात्‍मक परिणाम नहीं आते ।
  • वर्तमान स्थिति के विश्‍लेषण से यह स्‍पष्‍ट हो रहा है कि गलवान घाटी के बाद भारत चीन सीमा तनाव एवं सैन्‍य गतिरोध सबसे संवेदनशील दौर से गुजर रहा है और अप्रैल 2020 के पूर्व की स्थिति आ भी जाए तो भारत की विदेश कुटनीति पहले वाली स्थिति में नहीं आ पाएगी ।

दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ता नहीं होने के कारण

  • शी जिनपिंग आधुनिक चीन के सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में इतिहास में दर्ज होना चाहते हैं और मोदी से वार्ता को चीन में जिनपिंग की कमजोरी के तौर पर देखा जाता।
  • शी जिनपिंग यह संदेश देना चाहते हैं कि आनेवाले समय में भी आक्रामकता के साथ नेतृत्व देने की क्षमता उनमें है और चीन की संप्रभुत्ता संबंधी मामलों पर कभी पीछे नहीं हटा जाएगा। इसका ताजा उदाहरण ताइवान के खिलाफ चीनी सेना का आक्रामक युद्धाभ्यास  है। इस प्रकार जिनपिंग अपनी कट्टर राष्ट्रवाद की अपनी छवि को बनाए रखना चाहते हैं।
  • भारत और चीन दोनों देशों में घरेलू स्‍तर पर जो स्थितियों  विद्यमान है उसके दबाव में भी दोनों नेताओं ने वार्ता से किनारा करना बेहतर समझा हो।
  • ताइवान के साथ चल रहे तनावों के बीच चीन चाहता है कि भारत चीन की एक राष्‍ट्र नीति का समर्थन करें लेकिन भारत द्वारा इस मसले पर कोई विशेष रूचि नहीं दिखाया गया।
  • अमेरिका की नीतियों और हाल के बने कुछ नए गठबंधन का हिस्सा बनकर भारत ने चीन के साथ संबंधों में जो दूरी बनायी है उसे भी एक कारण माना जा रहा है कि जिसके कारण दोनों के बीच कोई वार्ता नहीं हो पायी ।

भारत चीन सीमा तनाव एवं सैन्‍य गतिरोध

  • भारत तथा चीन के मध्य लगभग 3488 किमी लंबी सीमा है जो लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में स्थित है। ये सीमाएं अभी तक स्पष्ट नहीं है और इस कारण चीन द्वारा सीमाओं का अतिक्रमण कर विवाद की स्थिति बनायी जाती है।
  • 1962 में पंचशील सिद्धांत को भूलकर चीन ने भारत पर हमला किया और इसी युद्ध के साथ चीन ने मैक मोहन रेखा को अस्वीकार कर दिया।
  • डोकलाम गतिरोध, पैंगोंग त्सोमोरी झील विवाद, 2019, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर विवाद आदि इसके हलिया उदाहरण हैं। 15 जून 2020 में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के मध्य हिंसक झड़प घटना इसी का उदाहरण है। इस घटना को 1967 के बाद का सबसे बड़ा सैनिक तनाव माना गया ।
  • हाल ही में चीन द्वारा संसद द्वारा नवीन सीमा कानून पारित किया गया तथा भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के 15 स्थानों को नवीन नाम से मानकीकृत किया है। चीन का यह कानून भारत और चीन के संबंधों में तनाव को और बढ़ा सकता है।

भारत के लिए चीन की चुनौती

  • चीन द्वारा सीमा सुरक्षा, सीमा निर्धारण, सीमा प्रबंधन तथा व्यापार से संबंधित नवीन सीमा कानून लाया गया जो 1 जनवरी 2022 से लागू है । यह कानून चीन के सैन्य अधिकारियों को राष्ट्रीय संप्रभुता एवं सीमा की रक्षा हेतु आवश्यक कदम उठाने हेतु सशक्त करती है।
  • हाल ही में चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों का नया नामकरण किया गया तथा इस क्षेत्र पर अपना अधिकार क्षेत्र होने का दावा किया गया।
  • चीन का नया भूमि सीमा कानून चीनी सेना को ‘‘आक्रमण, अतिक्रमण, घुसपैठ और उकसावे’’ के मामले में चीनी क्षेत्र की रक्षा करने का पूर्ण उत्तरदायित्व सौंपता है।
  • भारत चीन सीमा पर पिछले लगभग 2 वर्षो से निरंतर विवाद की स्थिति बनी हुई है। वर्तमान में चीन ने अधिकांश देशों के साथ सीमा विवाद को सुलझा लिया किन्‍तु भारत के साथ सीमा विवाद अभी तक नहीं सुलझा पाया ।
  • चीन लगातार तिब्बत  क्षेत्र में अपने सैन्य और रसद की मात्रा में वृद्धि एवं उसका आधुनिकीकरण कर रहा है ।चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति  के साथ साथ भारत और चीन के बीच बढ़ता सैन्‍य क्षमता अंतर भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है ।
  • चीन अपनी सीमा के किनारे पर नई बस्तियों का निर्माण भी कर रहा है। उल्‍लेखनीय है कि चीन का नया सीमा कानून वास्‍तविक नियंत्रण रेखा के पार चीनी सेना के अतिक्रमण को औपचारिक रूप  देने के साथ साथ सीमा क्षेत्र के नागरिक आबादी के निपटान और बेहतर बुनियादी ढांचे की वृद्धि का भी  प्रावधान करता है।
  • चीन की सलामी स्लाइसिंग रणनीति  तथा  भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ और अतिक्रमण  की बढ़ती संख्‍या  भारत के लिए चिंताजनक हैं।
  • चीनी आर्थिक शक्ति और आक्रामकता के माध्‍यम से विश्‍व में  विशेषकर हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर में अपना प्रभाव एवं विस्‍तार बढ़ा रहा है जो भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है।

 चीन की चुनौती एवं भारत की प्रतिक्रिया

  • भारत ने चीन के खिलाफ आर्थिक उपायों को अपनाते हुए विशिष्ट व्यापार वस्तुओं की आपूर्ति में कटौती, चीनी ऐप और कंपनियों आदि पर प्रतिबंध लगाने जैसे उपायों को अपनाया ।
  • चीन द्वारा सीमा पर सैनिकों के आधुनिकीकरण एवं संख्‍या बढ़ाने के प्रतिउत्‍तर में भारत ने सीमा पर सैनिकों की तैनाती तथा सैन्‍य गतिविधियों में वृद्धि की है ।
  • अंतर्राष्‍ट़ीय स्‍तर पर भारत ने चीन के विरोधियों के साथ सुरक्षा सहयोग को बढ़ाते हुए  अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्‍वाड को नई ऊर्जा देने का कार्य किया ।

भारत चीन सीमा तनाव एवं सैन्‍य गतिरोध समाप्‍त करने हेतु उपाए

वर्तमान हालात तथा चीन द्वारा बनाए गए नए सीमा कानून से भारत चीन सीमा तनाव ओर सैन्‍य गतिरोध का समाधान निकलना मुश्किल लग रहा है। अत: भारत को सीमा विवाद सुलझाने तथा चीन के प्रति संतुलन बनाने के प्रयासों में तेजी लानी होगी जिसके लिए निम्‍न प्रयास किए जा सकते हैं-

भारत चीन सीमा तनाव एवं सैन्‍य गतिरोध को सुलझाने हेतु प्रयास

  • नियमित संवाद, आपसी मतभेद तथा सीमा विवाद हल हेतु संवाद-तंत्र  स्‍थापित किया जाए।
  • किसी विवाद, युद्ध् जैसी हालात में तत्काल संवाद हेतु हॉट लाईन  की व्‍यवस्‍था ।
  • भारत व चीन को अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मामलों पर समन्वय को बढ़ाना चाहिये।
  • शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों के माध्यम से सीमा विवाद एवं गतिरोध के समाधान का प्रयास।
  • भारत द्वारा सीमा विवाद सुलझाने के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय मंचों द्वारा चीन पर दबाव बनाए जाने के प्रयास किया जाए।

निष्कर्ष

चीन द्वारा सीमा पर भारत के लिए अनेक चुनौतियां को उत्‍पन्‍न किया जा रहा है इसी क्रम में  भारत के संदर्भ में चीन के साथ बढ़ती सैन्य शक्ति के अंतर ने चिंता और बढ़ा दी है ।  हांलाकि 2020 के पूर्व की स्थिति बहाल होना कठिन है जब मतभेदों के बावजूद सीमा पर शांतिपूर्ण माहौल था फिर भी एशिया की 2 महा‍शक्तियों को शांति स्‍थापित करने ओर आपसी विश्‍वास बहाली के उपायों को अपनाना बेहतर होगा ।

उल्‍लेखनीय है कि निरंतर दबाव आदि कारणों से चीन धीरे धीरे अपने तरीकों में सुधार कर रहा है फिर भी भारत को सतर्कता एवं बुद्धिमानी से काम लेते हुए सीमा पर सभी टकराव वाले क्षेत्रों से पूरी तरह से पीछे हटने और डी-एस्केलेशन के लिए दबाव डालने के प्रयासों को जारी रखना होगा ।

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