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गुटनिरपेक्ष आंदोलन

गुटनिरपेक्ष आंदोलन

Non Aligned Movement

गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रथम सम्मेलन वर्ष 1961 बेलग्रेड में आयोजित हुआ था जो वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद विश्व का सबसे बड़ा राजनीतिक समन्वय और परामर्श का मंच है। भारत समेत 120 विकासशील देश इसके सदस्य हैं तथा इस समूह में 10 अंतर्राष्ट्रीय संगठनों व 17 देशों को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की पृष्ठभूमि

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व धीरे धीरे दो गुटों में बंटने लगा में बंटने लगा और शीत युद्ध का दौर आरंभ हुआ जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सोवियत संघ के विघटन [1990-91] तक चला। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच होड़ लगी थी कि ज्यादा से ज्यादा देशों को अपने अपने गुटों में शामिल किया जाये लेकिन उपनिवेशवाद से स्वतंत्र हुए नवीन देश किसी भी ग्रुप में शामिल नहीं होना चाहते थे।

भारत भी नवस्वतंत्र राष्ट्र था तथा तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू का मानना था कि एशिया, लैटिन अमेरिका और अफ्रीका के नवस्वतंत्र राष्ट्रों और गरीब देशों को इन बड़ी शक्तियों के गुट में शामिल होने से फायदे की बजाए नुकसान ही होगा। अतः यह बेहतर होगा कि महाशक्तियों के गुट से बचने के लिए एक अलग गुट खड़ा हो जाए जो इससे अलग हो।  

इसी समय बड़े पैमाने पर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देश द्वारा नया गठजोड़ बनाने की कोशिश भी की जा रही थी जो अंततः 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के रूप में सामने आया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के निर्माण में जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्र प्रमुख कर्नल नासिर और यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो का प्रमुख योगदान था।

इस प्रकार भारत ने भी इस प्रकार भारत ने भी अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता के तत्त्व को अपनाया और न केवल महाशक्तियों के गुट से दूर रहकर देश के विकास पर ध्यान केन्द्रित कर सका बल्कि अपनी विदेश नीति में काफी हद तक स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन का उद्देश्य

  • वैश्विक सैन्य गठबंधनों से पर्याप्त दूरी बनाना तथा सैन्य संघर्षों को हतोत्साहित करना।
  • शीतयुद्ध काल की राजनीति से दूरी बनाना तथा स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अनुसरण ।
  • सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहन।
  • विकासशील देशों के मध्य [दक्षिण दक्षिण सहयोग] बढ़ाना।
  • समानता, न्याय तथा आपसी लाभ पर आधारित नई विश्व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना।
  • साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी नीतियों का विरोध।
  • वैश्विक स्तर पर रंगभेद की नीति का विरोध।
  • वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के संरक्षण हेतु प्रयास।

गुटनिरपेक्षता आंदोलन की वर्तमान प्रासंगिकता

वर्तमान संदर्भ में देखा जाए तो प्रतीत होता है कि यह आंदोलन अपना प्रभाव खोता जा रहा है। 90 के दशक के बाद जिस तरह से दुनिया में बदलाव आया और सोवियत संघ का विघटन हुआ उसमें दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियां अमेरिका और चीन दिखती है ओर शेष विश्व इन दोनों के बीच बंटती जा रही है तथा लगभग प्रत्येक देश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर किसी ना किसी शक्तिशाली देश के साथ जुड़ा नजर आ रहा है।

  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व के 2 गुटों में बंटने से आरंभ हुए शीत युद्ध के हालातों में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का गठन हुआ। चूंकि 1990-91 के बाद सोवियत संघ के विघटन हो गया तथा शीत युद्ध समाप्त हो गया और कहा जाने लगा कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्य अप्रासंगिक हो गया है जिसे समाप्त कर देना चाहिए।
  • सोवियत संघ का विघटन एवं शीत युद्ध की समाप्ति के बाद गुटनिरपेक्ष आंदोलन के किसी भी गुट में शामिल न होने का उद्देश्य अप्रासंगिक हो गया।  
  • 1990 के दशक तक विश्व के लगभग सभी देश स्वतंत्र हो चुके थे। अतः इसका उपनिवेशवाद के विरोध का लक्ष्य अप्रासंगिक हो गया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद परमाणु सम्पन्न देशों ने परमाणु निरस्त्रीकरण के बजाय अपने परमाणु हथियारों की मात्रा को बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिया। इसके अलावा गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य देश भी परमाणु परीक्षणों को अंजाम दे रहे थे। अतः सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देने का उद्देश्य अप्रासंगिक हो गया।

उपरोक्त तथ्यों से प्रतीत होता है कि वर्तमान में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है लेकिन फिर भी अनेक ऐसे कारण है जिसके कारण यह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना यह शीत युद्ध के दौर में था।

 

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता

विश्व शांति एवं सहयोग
विश्व शांति की स्थापना प्रयासों में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की भूमिका महत्वपूर्ण रही है तथा सदस्यों की सक्रिय सहयोग से आनेवाले समय में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रह सकती है।  हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला करने, रूस तथा यूक्रेन संकट में इसकी भूमिका हो सकती है।
अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के निराकरण हेतु
वर्तमान वैश्विक हालात जैसे अफगानिस्तान संकट, चीन की विस्तारवादी नीतियां, रूस एवं यूक्रेन के बीच युद्ध जैसे तनाव, विकसित देशों की संरक्षणवादी नीतियां, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, महामारी आदि में गुटनिरपेक्ष आंदोलन प्रासंगिक है।

इस संदर्भ में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मई 2020 को दिए गए भाषण में कहा गया कि “कोविड-19 के रूप में मानवता पिछले कई दशकों के सबसे भयंकर संकट का सामना कर रही है तथा वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन की ज़रूरत है।”

आपसी मतभेदों को दूर करने हेतु
विकासशील देशों के मध्य किसी विशिष्ट मुद्दे को लेकर मतभेद होने पर इसका उपयोग एक महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में किया जा सकता है। यह दक्षिण दक्षिण सहयोग को बढ़ाने हेतु बेहतर मंच है।
क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता
गुटनिरपेक्ष आंदोलन क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के सिद्धांत का समर्थन करता है और वर्तमान में दक्षिणी चीन सागर, चीन की साम्राज्यवादी नीतियां, इजराइल फलीस्तीन संघर्ष इत्यादि में देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का संरक्षण इसकी मौजूदा प्रासंगिकता को बताता है।
परमाणु एवं जैविक हथियारों पर नियंत्रण
विश्व में बढ़ते तनाव को देखते हुए परमाणु एवं जैविक हथियारों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु यह एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावी मंच सबित हो सकता है।
रंगभेद एवं मानवाधिकार उन्मूलन
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का एक उद्देश्य रंगभेद उन्मूलन एवं मानवाधिकारों को स्थापित करना भी रहा है। वर्तमान में कई देशों जैसे अमेरिका, चीन, म्यांमार, मध्य पूर्व देशों में रंगभेद तथा मानवाधिकार उल्लंघन के अनेक मामले आते रहते हैं। अतः इस उद्देश्य को अभी प्राप्त करना शेष है। चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों का उल्लंघन संघर्ष के प्रमुख कारण बन सकते हैं।
स्वतंत्र विदेश नीति
गुटनिरपेक्षता का तात्पर्य है कि गरीब और विकासशील देशों को किसी महाशक्ति के गुट में शमिल होने की ज़रूरत नहीं है और ये देश अपनी स्वतंत्र विदेश नीति अपना सकते हैं। यह विचार अपने आप में बुनियादी महत्त्व के हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन और भारत

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार मई 2020 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुटनिरपेक्ष सम्मेलन को संबोधित किया गया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कोविड-19 के रूप में मानवता पिछले कई दशकों के, ‘सबसे भयंकर संकट’ का सामना कर रही है तथा वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए गुट निरपेक्ष आंदोलन की ज़रूरत को महत्वपूर्ण बताया।

जूलाई 2020 में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने बयान में कहा है कि भारत की विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का तत्त्व एक विशेष काल एवं संदर्भ में ही प्रासंगिक था। विदेश मंत्री के अनुसार “भारत अब गुटनिरपेक्षता से आगे निकल गया है, ये आंदोलन एक खास दौर के लिए था, अब भारत एक अलग दौर में है।”

गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की भूमिका

  • भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक देश में एक है।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना से ही भारत द्वारा इसके सिद्धांतों का पालन किया जाता रहा है।
  • भारत ने अपनी विदेश नीति में भी गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तत्वों को प्रमुख स्थान दिया है।
  • वर्ष 2016 और 2018 के अलावा गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना से सभी शिखर सम्मेलनों में भारतीय प्रधानमंत्री भाग लिया जाता रहा है।
  • मई 2020 में कोविड-19 महामारी काल में गुटनिरपेक्ष आंदोलन में आयोजित आभासी शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भाग लिया गया तथा वैश्विक एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन की आवश्यकता पर बल दिया गया।

90 के दशक के बाद बदलते विश्व में बाजार ने बहुत बड़ा बदलाव किया और भारत भी एक महाशक्ति के रूप में उभरने की ओर अग्रसर है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक परिदृय में आनेवाले बदलाव तथा पकिस्तान, चीन जैसे पड़ोसियों की नीतियों से यह साफ नजर आता है कि भारत को जिस तरह के समर्थन और ताकत की जरूरत है वो गुटनिरपेक्ष आंदोलन पूरा नहीं कर सकती।

भारत की गुटनिरपेक्ष आंदोलन पर उठते सवाल

  • कई अवसरों पर गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य देशों द्वारा भारत को समर्थन नहीं दिया गया। 1962 के युद्ध के दौरान घाना, इंडोनेशिया जैसे देशों ने चीन का समर्थन किया तो वहीं 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान इंडोनेशिया, मिस्र जैसे देशों ने पाकिस्तान का समर्थन किया।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन में आम सहमति का अभाव तथा सदस्य देशों की आपसी गुटबंदी जैसे कारणों से भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलनों के प्रति थोड़ा उदासीन हो गया।
  • 1970 के दशक के बाद सोवियत संघ की ओर भारत का झुकाव, सोवियत संघ से संधि और भारत के परमाणु परीक्षण से भारत की गुटनिरपेक्षता नीति पर सवाल उठे।
  • वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन तथा भारत ने अर्थव्यवस्था में किए गए बड़े आर्थिक सुधार से भारत का झुकाव अमेरिका की ओर होने लगा जिससे पुनः भारत की नीति पर सवाल उठने लगे।
  • भारत का मालाबार अभ्यास, क्वाड ग्रुप में शामिल होने पर कहा जाने लगा है कि भारत अमेरिकी गुट में शामिल होने की ओर अग्रसर है।
  • वर्ष 2016 एवं 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा गुटनिरपेक्ष आंदोलन के शिखर सम्मेलनों में भाग नहीं लिया तो माना जाने लगा कि भारत के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रासंगिकता कम हो रही है।
  • मई 2020 में भारतीय प्रधानमंत्री तथा जूलाई 2020 में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा दिए गए बयान से पुनः भारत की गुटनिरपेक्षता नीति पर भ्रम की स्थिति है।

भारतीय विदेश नीति में आए बदलाव

गुटनिरपेक्ष आंदोलन स्वतंत्रता के बाद विदेश नीति में शमिल प्रमुख तत्व।
रणनीतिक स्वायत्तता Strategic Autonomy शीत युद्ध के बाद भारतीय विदेश नीति में विशेष स्थान दिया गया।
मल्टी अलायमेंट Multi-alignment अपने हितों को ध्यान में रखते हुए एक से जयादा संगठनों में शामिल होना
मुद्दा आधारित साझेदारी या गठबंधन मुद्दे तथा राष्ट्रीय हित के आधार पर साझेदारी करना।

 

पिछले कुछ वर्षों के घटनाओं, भारतीय नीतियों तथा भारतीय नेतृत्व के कथनों को देखें तो प्रतीत होता है कि भारत गुटनिरपेक्षता के अतीत से बाहर निकल चुका है और भारत आज अपने हितों को देखते हुए दुनिया के दूसरे देशों के साथ रिश्ते बना रहा है।

  • 2019 के रायसीना डायलॉग में विदेश सचिव विजय गोखले ने कहा था, “भारत गुटनिरपेक्षता के अतीत से बाहर निकल चुका है। भारत आज अपने हितों को देखते हुए दुनिया के दूसरे देशों के साथ रिश्ते बना रहा है, और अंतरराष्ट्रीय मंचों और एजेंसियों के ज़रिये दुनिया के लिए जो नियम बनाए जा रहे हैं, उसमें भारत की भूमिका बढ़ाने का वक्त आ गया है।

 

  • सोवियत संघ के विघटन के बाद जब गुटनिरपेक्ष आंदोलन कमजोर पड़ा तो भारतीय विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का महत्त्व भी कम होने लगा और भारतीय विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तत्त्व के स्थान पर रणनीतिक स्वायत्तता Strategic Autonomy पर बल दिया जाने लगा। हांलाकि इसमें भी अमेरिका विरोध की झलक देखने को मिलती थी। अतः इस पर ज्यादा बल नहीं दिया गया।

 

  • इसके बाद भारत द्वारा मल्टी अलायमेंट के तत्वों को अपनाया गया अर्थात् अपने हितों को ध्यान में रखते हुए एक से अधिक संगठनों में शामिल होने लगा। लेकिन इससे भारत की छवि एक अवसरवादी देश के रूप में रूपान्तरित होने का खतरा व्याप्त हो गया।

 

  • मल्टी अलायमेंट के बाद ‘मुद्दा आधारित साझेदारी अथवा (issue based partnership or coalition) पर जोर दिया गया। लेकिन भारत की विदेश नीति का यह तत्त्व भी ज्यादा नहीं चल पाया

 

  • 2020 में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा भारतीय विदेश नीति में ‘एडवांसिंग प्रोस्पेरिटी एण्ड इन्फ्रलुएंस के तत्त्व को प्रमुखता से अपनाए जाने की बात कही गयी।  हालाँकि एस जयशंकर द्वारा यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तत्व पर कम बल देने का यह अर्थ नहीं कि भारत किसी गठबंधन का हिस्सा होने जा रहा है।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की चुनौतियां

  • वैश्विक एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य देशों के मध्य असहमति।
  • वर्तमान वैश्विक राजनीति में हुए परिवर्तन में बहुध्रुवीय विश्व की व्यवस्था।
  • समय के अनुसार गुटनिरपेक्ष आंदोलन के एजेंडे में बदलाव के प्रति सदस्य देशों की उदासीनता।
  • क्षेत्रीय प्रतिद्वंदिता एवं भूमंडलीकरण के वर्तमान दौर में राष्ट्रों के बीच बढ़ती आपसी निर्भरता।
  • क्षेत्रीय हितों के पोषण हेतु सदस्य देशों के क्षेत्रीय समूह जैसे यूरोपीय यूनियन, आसियान, सार्क इत्यादि।
  • आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, शरणार्थी समस्याओं पर गुटनिरपेक्ष आंदोलन का स्पष्ट एजेंडा नहीं होना।
  • वर्तमान कोविड महामारी जैसे दौर में सहयोग के बजाए सदस्यों देशों की असहयोगी की रणनीति।
  • सदस्य देशों के मध्य आपसी मतभेद जैसे- इजराइल एवं फिलीस्तीन, भारत एवं चीन के मतभेद।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन में अग्रणी भूमिका वाले देशों द्वारा कई अवसरों पर गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों से समझौता। जैसे भारत द्वारा परमाणु परीक्षण, क्वाड गठबंधन आदि ।

आवश्यकता एवं महत्व

कोरोना वायरस महामारी ने हमारी परस्परता और निर्भरता को और अधिक स्पष्ट कर दिया है। हालांकि महामारी के अलावा आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक अशांति, साइबर सुरक्षा जैसी अनेक चुनौतियां है जिनका सामना कोई देश अकेले नहीं कर सकता है तथा आपसी सहयोगी तथा स्पष्ट नीति द्वारा ही इनका हल निकाला जा सकता है।

हांलाकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अनेक अंतराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय आदि अस्तित्व में आई लेकिन कोई भी संस्थान बदलते वैश्विक परिवेश में स्वयं को ढाल नहीं सकी और इनकी इनकी विफलता सामने आई है।

  • संयुक्त राष्ट्र संघ कई मामलों जैसे अफगानिस्तान युद्ध, इजराइल फिलीस्तीन संघर्ष में युद्ध रोकने तथा शांति स्थापना में असफल हुआ है।
  • बदलते वैश्विक परिवेश के अनुसार इसने अपने ढांचे एवं पारदर्शिता में अपेक्षित सुधार नहीं किया है। इस कारण इसमें सुधार की मांग उठ रही है जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद।
  • कोविड महामारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्य प्रणाली संदेह के घेरे में है तथा इस संस्था पर चीनी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है।
  • विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन इत्यादि जैसे संगठन की महामारी, वैश्विक मंदी, संरक्षणवादी नीतियों, व्यापार युद्ध जैसे मामलों पर अप्रभावी साबित हुई हैं।
  • कई वैश्विक मुद्दों पर आपसी सहमति का अभाव तथा भ्रम की स्थिति दूर करने में संयुक्त राष्ट्र असफल रहा है जैसे आतंकवाद के मुद्दे पर अभी तक स्पष्ट परिभाषा निर्धारित नहीं की जा सकी है।

अतः उपरोक्त वैश्विक संगठनों की असफलता को देखते हुए विश्व के सभी राष्ट्रों को तमाम वैश्विक मुद्दों पर एक साथ लाने के संदर्भ में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का महत्व बढ़ जाता है। उल्लेखनीय है कि 120 सदस्य देशों के साथ इस संगठन का आधार बहुत ही व्यापक है जिसके माध्यम से विश्व की अनेक समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।

  • कोविड महामारी से निपटने तथा भविष्य में ऐसी समस्याओं से निपटने हेतु नीति निर्माण में।
  • जलवायु परिवर्तन पर एक समग्र दृष्टिकोण विकसित करने हेतु।
  • महिलाओं, बच्चों तथा शरणार्थी समस्याओं के हल हेतु।
  • रंगभेद तथा मानवधिकार उल्लंघन के बढ़ते मामलों को रोकने हेतु।
  • आतंकवाद, साइबर अपराध, नशीले पदार्थ एवं मानव तस्करी जैसे अपराधों को दूर करने में।
  • गरीबी, भुखमरी लैंगिक असमानता के उन्मूलन हेतु।
  • विभिन्न देशों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा एवं क्षेत्रीय गुटबाजी को रोकने हेतु।
  • साम्राज्यावादी नीतियों पर नियंत्रण हेतु।
  • गरीब देशों को नव साम्राज्यवाद से मुक्ति दिलाने हेतु

कोविड महामारी ने सिखाया है कि हम कई मामलों पर एक दूसरे पर निर्भर है तथा वर्तमान परिस्थितियों का सामना मिलकर करना होगा। आवश्यकता इस बात की है कि वर्तमान बदलते वैश्विक व्यवस्था में गुटनिरपेक्ष आंदोलन में सुधार लाया जाए और इसके एजेंडें में विविधताओं का समावेश किया जाए।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन की सुधार प्रक्रिया में भारत वैश्विक नेतृत्व में बड़ी भूमिका निभा सकता है। इस संदर्भ में भारत तथा अन्य देशों को इसकी प्रसांगिकता को समझना होगा और इसमें सुधार के लिए पहल करनी होगा। उल्लेखनीय है कि अन्य वैश्विक संस्थाएं जहां वर्तमान समय में अपनी प्रासंगिकता खोती जा रही है उस स्थिति में यही एक मंच है जिसके द्वारा वैश्विक समस्याओं को व्यापक रूप से हल निकाला जा सकता है।

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