भारत एवं भूटान
हिमालय में स्थित भूटान और भारत के मध्य लंबे समय से कूटनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संबंध रहे हैं जो 1949 की मैत्री संधि के माध्यम से संचालित होते रहे हैं।
सहयोग एवं मैत्री संधिवर्ष 1949 में भारत और भूटान के मध्य मैत्री संधि हुई जिसके अनुसार दोनों देशों के मध्य शांति और एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने पर सहमति बनी। इस संधि में शामिल अनेक प्रावधानों में सबसे महत्वपूर्ण था रक्षा और विदेश मामलों में भूटान का भारत पर आश्रित होना।
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भारत की विदेश नीति में सदा ही पड़ोसी देश हमेशा की प्राथमिकता में रहे हैं फिर भी पिछले कुछ वर्षों में पड़ोसी प्रथम की नीति को विशेष रूप से महत्व दिया जा रहा है। यही कारण है कि वर्ष 2014 में पहली बार जब नरेंद्र मोदी ने भारतीय प्रधानमंत्री का पद सँभाला तो अपने पहले विदेश दौरे के लिये भूटान को चुना। वर्ष 2019 में दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ग्रहण में बिम्सटेक देशों के नेताओं को आमंत्रित किया गया जिसमें भूटान के प्रधानमंत्री भी शामिल थे। इसी क्रम में वर्ष 2019 में ही भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भूटान की यात्रा की गयी तथा हाल ही में भारतीय राष्ट्रपति के निमंत्रण पर भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक अप्रैल 2023 तक भारत की आधिकारिक यात्रा पर रहे।
मार्च 2023 में भूटान नरेश की हुई अधिकारिक यात्रा में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध को मजबूत करने की दिशा में अनेक सहयोगात्मक कदम उठाए गए जिनमें प्रमुख निम्नलिखित है।
- भारत द्वारा भूटान को 5 वर्ष के लिए अतिरिक्त स्टैंडबॉय क्रेडिट सुविधा।
- भूटान को अंतर्राष्ट्रीय इंटरनेट गेटवे की स्थापना में भारत द्वारा सहायता।
- ई लर्निंग के क्षेत्र में भारत के राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क के साथ भूटान के डुकरेन का समेकन।
- चूखा, बसोछु, संकोश जलविद्युत परियोजना संयंत्रों की स्थापना पर चर्चा ।
- कोकराझार-गेलेफू रेल लिंक तथा गेलेफू हवाई अड्डे के निमार्ण हेतु निवेश सहायता।
- पश्चिम बंगाल के जयगांव तथा भूटान के फुंतशोलिंग में पहली एकीकृत चेक पोस्ट की स्थापना पर सहमति।
भारत के लिये भूटान का महत्त्व
- भूटान भौगौलिक रूप से भारत एवं चीन के मध्य स्थित बफर स्टेट है।
- भारत की सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज़ से भूटान अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र है।
- भारत के पड़ोसी देशों में भूटान ऐसा देश है जो भारत के प्रति हमेशा ईमानदारी प्रदर्शित करता है। चीन की लालच तथा धमकियों के बावजूद उसने भारत का साथ नहीं छोड़ा है। उल्लेखनीय है कि भूटान ने अभी तक चीन के OBOR प्रोजेक्ट को सहमति नहीं दी है।
- चुम्बी घाटी भारत, भूटान एवं चीन के ट्राईजंक्शन पर स्थित है जो भारत के चिकन नेक से 500 किमी की दूरी पर है।
- भारत में चीन के प्रवेश पर नियंत्रण हेतु भूटान महत्वपूर्ण है क्योंकि भूटान में चीन का राजनयिक मिशन नहीं है।
- भूटान की सीमा भारत के पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और असम से साझा होती है इस कारण भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की सुरक्षा और विकास की दृष्टि से भूटान की महत्वपूर्ण भूमिका है।
भारत एवं भूटान सहयोग के पक्ष
आर्थिक सहयोग
- भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार भारत है तथा भूटान अपनी आवश्यकताओं हेतु अधिकांश संसाधन भारत से आयात करता है।
- दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने एवं मुक्त व्यापार हेतु वर्ष 2016 में दोनों देशों के मध्य व्यापार, वाणिज्य एवं पारगमन समझौता हुआ। भूटान अपने कुल आयात का 80 प्रतिशत से अधिक भारत से करता है और भूटान के कुल निर्यात का 85 प्रतिशत से अधिक भारत को किया जाता है ।
- वर्ष 1961 से ही भूटान की पंचवर्षीय विकास योजनाओं को वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी जा रही है।
- हाल ही में भारत द्वारा भीम-UPI भूटान में लॉन्च किया गया। भूटान भीम एप के माध्यम से भारत के निकटतम पड़ोसी देशों में मोबाइल आधारित भुगतान स्वीकार करने वाला प्रथम देश है।
- व्यापारिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में जुलाई 2020 में भारत और भूटान ने पश्चिम बंगाल के जयगाँव और भूटान के पासाखा के बीच एक नया व्यापारिक मार्ग खोला।
जलविद्युत सहयोग
- भूटान के रन ऑफ द रिवर बांधों द्वारा होने वाला जलविद्युत भारत एवं भूटान के संबंधों का आर्थिक आधार है। भारत भूटान के बांधों वित्तीय सहायता देता है जिसके बदले भारत बहुत कम कीमतों पर भूटान से बिजली खरीदता है। भूटान से भारत निर्यात होनेवाली मद में सबसे ज्यादा बिजली है।
- चूखा, कुरिछू तथा ताला जल विद्युत परियोजनाओं में भारत का वित्तीय सहयोग रहा है तथा उत्पादित बिजली भारत को प्राप्त होती है। इसके अलावा भारत ने भूटान के पुनातसंगछू, वांगछु, खोलांगचू, मांगदेचू पनबिजली परियोजनाओं में मदद करने का काम किया है ।
- उल्लेखनीय है कि भूटान पठारी क्षेत्र है जहां अपार जल है और इस कारण यहां जलविद्युत की अपार संभावनाएं है तथा जलविद्युत भूटान की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
- वर्ष 1971 में भारत के प्रयास से भूटान को संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता मिली तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में भूटान का प्रतिनिधित्व भारत द्वारा किया जाता है।
रक्षा एवं सामरिक सहयोग
- भारत भूटान के साथ किए गए संधि के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है इसका उदाहरण डोकलाम में देखा जा सकता है जब भारत ने किसी भी कीमत पर भूटान का साथ नहीं छोड़ा और चीन का कड़ा संदेश दिया।
अन्य महत्वपूर्ण सहयोग
- 2021 में भारत द्वारा भीम-UPI भूटान में लॉन्च किया गया।
- वर्ष 2020 में भारत सरकार द्वारा भारत एवं भूटान के मध्य पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में सहयोग के लिये वायु, अपशिष्ट, रासायनिक प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय क्षेत्रों हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुआ।
- वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूटान यात्रा के दौरान भारत और भूटान के बीच हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट, भारत के नेशनल नॉलेज नेटवर्क को भूटान से जोड़ने, मल्टी स्पेशलिएटी हॉस्पिटल, स्पेस सैटेलाइट, रूपे कार्ड के प्रयोग, इसरो द्वारा भूटान में एक ग्राउंड स्टेशन स्थापित करने, संकोश बहुउद्देशीय पनबिजली परियोजना चलाने पर सहमति जैसे महत्वपूर्ण समझौते हुए।
भारत एवं भूटान संबंधों में चुनौतियां
- डोकलाम, शखातो, सिंचुलुंग्पा और मैंगमारपो घाटियां, जकारलुंग घाटियां पर चीन और भूटान के मध्य विवाद है तथा भारत की सुरक्षा के लिए सामरिक रूप से डोकलाम क्षेत्र महत्वपूर्ण है।
- इस क्षेत्र में चीन का प्रभुत्व सिलीगुड़ी कॉरिडोर को खतरे में डाल सकता है जो चिकन नेक के माध्यम से भारतीय मुख्य भूमि को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है।
- विद्युत खरीद नीति में भारत द्वारा किए गए बदलाव तथा भूटान को नेशनल पावर ग्रिड में शामिल करने से इनकार करना आदि ने दोनों देशों के संबंधों में कटुता पैदा की है।
- यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम तथा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड जैसे विद्रोही संगठन दक्षिणी भूटान के घने जंगलों में रहकर भारत के विरुद्ध कार्य करते हैं।
- कनेक्टिविटी में सुधार हेतु भारत द्वारा प्रस्तावित बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल मोटर वाहन समझौता (BBIN-MVA) पर्यावरण संबंधी चिंताओं के कारण भूटान द्वारा रोक दिया गया है । जो दोनों देशों के संबंध में एक चुनौती है।
भूटान, चीन एवं भारत
नेपाल, पाकिस्तान तथा अन्य पड़ोसी देशों की तरह भूटान में भी चीन अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। चीन औपचारिक रूप से भूटान के साथ संबंधों को बढ़ाना चाहता है लेकिन उसे सफलता हाथ नहीं लगी है।
चीन के प्रति भूटान की नीति
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भूटान एवं चीन के मध्य ‘थ्री स्टेप रोडमैप’
- अक्टूबर 2021 में भूटान और चीन ने अपने सीमा विवाद सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसे ‘थ्री स्टेप रोडमैप’ कहा गया।
‘थ्री स्टेप रोडमैप’ के निहितार्थ
द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाना
- इस रोडमैप के माध्यम से चीन सीमा विवाद को लेकर भूटान के साथ मोलभाव कर अपने हितों को साधना चाहता है।
चुम्बी घाटी पर कब्जा
- चीन सिलीगुड़ी कोरिडोर के निकट स्थित भूटान की चुम्बी घाटी पर अपनी उपस्थिति बढ़ा कर भारत पर बढ़त पाना चाहता है जो सामरिक रूप से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ।
सिलीगुड़ी कोरिडोर/ चिकन नेक पर बढ़त हासिल करना
- भारत के लिए सामरिक और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी कोरिडोर के करीब चीन का प्रभाव भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बन सकता है क्योंकि इससे पूर्वोत्तर राज्यों से कनेक्टिविटी के लिए खतरा बन सकता है।
भारत पर दबाव बनाने हेतु
- डोकलाम विवाद के बाद चीन की तरफ से यह कोशिश की गयी कि वह भूटान से सीधे संपर्क कर संवाद स्थापित करे जिसमें भारत की कोई भूमिका नहीं हो ।
भूटान की सीमा पर दावेदारी
- यह चीन के द्वारा भूटान की पूर्वी सीमा पर दावेदारी दबाव बनाने की रणनीति है जिसका इसका प्रत्यक्ष लाभ उसे डोकलाम क्षेत्र में अपनी दावेदारी को मजबूत करने के रूप में मिल सकता है।
भूटान के विदेश मंत्री की चीन यात्रा
अक्टूबर 2023 में भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी द्वारा चीन की यात्रा से संकेत मिल रहा है कि भूटान ओर चीन के मध्य जल्द ही राजनयिक संबंध स्थापित हो सकते है जो भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि यदि चीन और भूटान के बीच सीमा को लेकर कोई समझौता होता है, तो उसका सीधे तौर पर असर डोकलाम ट्राई जंक्शन पर पड़ सकता है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच यहाँ पर लंबे समय तक गतिरोध रहा था।
भूटान के विदेश मंत्री की चीन यात्राअक्टूबर 2023 में भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी द्वारा चीन की यात्रा से संकेत मिल रहा है कि भूटान ओर चीन के मध्य जल्द ही राजनयिक संबंध स्थापित हो सकते है जो भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि यदि चीन और भूटान के बीच सीमा को लेकर कोई समझौता होता है, तो उसका सीधे तौर पर असर डोकलाम ट्राई जंक्शन पर पड़ सकता है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में भारत और चीन की सेनाओं के बीच यहाँ पर लंबे समय तक गतिरोध रहा था। यात्रा के निहितार्थ
उल्लेखनीय है कि दोनों देशों के मध्य 7 वर्ष से ज्यादा समय से ठप पड़ी सीमा वार्ता को फिर से शुरू किया गया है और दोनों देशों के मध्य अभी तक 11 विशेषज्ञ समूह की बैठकें और सीमा वार्ता के 24 दौर सम्पन्न हो चुके हैं। चीन भूटान सीमा विवाद
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भारत की आगे की रणनीति
चीन और भूटान के बीच बढ़ते रिश्ते से भारत को सतर्क होने की आवश्यकता है क्योंकि चीन अपने उद्देश्य में सफल होता है तो भूटान में उसका प्रभाव बढ़ सकता है और वहां रेल लाइन, अवसंरचनात्मक कार्यों को कर सकता है जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु अच्छा नहीं है।
भारत एवं भूटान के रिश्ते अपने आप में विशेष है और दोनों देश एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारत को भूटान से रिश्तों को और मजबूत किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि साम्राज्यवादी चीन की नजर भूटान पर है और यदि भूटान में चीनी हस्तक्षेप बढ़ता है तो भारत भूटान के मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की नींव भी कमज़ोर पड़ सकती है।