लैंगिक रूढ़ीवादी धारणा-भारतीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय

प्रश्‍न – लैंगिक रूढ़ीवादी धारणाओं से मुकाबला करने के लिए भारतीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय की चिंताओं का उल्‍लेख कीजिए । (69th BPSC Mains)

उत्‍तर- किसी लैंगिक समूह के सदस्यों को उनके व्यक्तिगत गुणों और योग्यताओं के बजाय उनके लैंगिक आधार पर एक समान ढंग से देखे जाने की प्रवृत्ति लैगिंक रूढिवादिता कहा जाता है जिसे निम्‍न धारणाओं के उदाहरण से समझा जा सकता है।

  • महिलाएं अधिक भावुक, अतार्किक होती है।
  • महिलाएं बच्चे पैदा करना चाहती हैं और घर के कामों में अधिक रुचि रखती हैं।
  • विवाहेतर यौन संबंधों में पुरुष व्‍याभिचारी नहीं माने जाते लेकिन महिलाएं व्यभिचारिणी मानी जाती हैं।

इस प्रकार किसी लैंगिक समूह के बारे में पूर्वनिर्धारित और अतार्किक वैज्ञानिक विचार लैंगिक रूढिवादिता कहलाता है। उल्‍लेखनीय है कि लैंगिक रूढिवादिता से लैंगिक भेदभाव, उत्पीड़न, असमानता और हिंसा को समर्थन मिलता है तथा न्‍यायालय का मानना है कि ऐसे शब्‍दों और वाक्‍याशों के प्रयोग से संविधान द्वारा प्रदत्‍त समानता के अधिकार का उल्‍लंघन होता है तथा न्‍यायालय के निर्णय भी यदाकदा प्रभावित होते हैं।

न्‍यायालय के अनुसार भाषा, रूढ़िवादिता को गहरा बना सकती है, जिससे महिलाओं की न्याय तक पहुँच काफ़ी हद तक प्रभावित होती है। इसी को समझते हुए कानूनी भाषा तथा निर्णयों में निहित लैंगिक रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और उसे समाप्त करने में न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की सहायता के उद्देश्य हाल ही में सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने लैंगिक रूढ़िवादिता पर हैंडबुक जारी की है।

यह हैंडबुक विशेषकर महिलाओं के बारे में पुराने और गलत विचारों को बढ़ावा देने वाले वैकल्पिक शब्द और वाक्यांश जैसे ‘व्यमिचारिणी’ के स्थान पर; वह महिला जो विवाहेतर यौन संबंधों में संलग्न है। इसी प्रकार ‘अफेयर’ के लिए ‘विवाह से बाहर का रिश्ता’ की सिफारिश की गयी है।

69BPSC Mains के अन्‍य Model Answer को देखने के लिए नीचे दिए गए लिंक से जाए।

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