भारतीय संविधान भारतीय शासन व्यवस्था का एक पवित्र दस्तावेज है जो 26 जनवरी 1950 को संपूर्ण भारत में लागू किया गया। भारतीय संविधान की विशेषता पर विचार करें तो स्पष्ट होता है कि विश्व की सभी प्रमुख संविधानों की विशेषताएं को समाहित करते हुए भारतीय संविधान को संविधान सभा द्वारा विशेष रूप से बनाया गया ।
भारत के संविधान की प्रमुख विशेषताएं
विशालतम एवं लिखित संविधान
- सर आईवर जेनिंग्स के अनुसार भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा और विस्तृत संविधान है।
- मूल संविधान के प्रारूप में 22 भाग 395 अनुच्छेद तथा 9 अनुसूचियां थी जिसमें कालांतर में संशोधनों के साथ अभिवृद्धि होती गई।
- भारतीय संविधान के बड़ा होने का मुख्य कारण संघ और राज्य से संबंधित सभी आवश्यक प्रावधानों को शामिल किया जाना है जबकि लिखित होने का प्रमुख कारण भारत की नृजातीय, सांस्कृतिक, भौगौलिक एवं भाषायी विविधताओं के मध्य टकराव को रोकते हुए स्पष्ट व्याख्या करना है।
कठोर एवं लचीला संविधान
- भारतीय संविधान की विशेषता यह है कि यह न तो लचीला है और ना ज्यादा कठोर।
- अन्य परिसंघीय संविधानों की तुलना में भारतीय संविधान में लचीलापन पाया जाता है। यही कारण है कि पिछले 70 सालों में संविधान में 103 संविधान संशोधन हो चुके हैं। हांलाकि संविधान संशोधन इतना भी लचीला नहीं है कि इसके किसी भी भाग में आसानी से संशोधन किया जा सके बल्कि कई भागों में संशोधन हेतु विशेष व्यवस्था दी गयी है। संविधान की इसी विशेषता के कारण भारतीय संविधान का स्वरूप परिवर्तनशील है और वह जीवंत दस्तावेज कहलाता है।
संविधान की सर्वोच्चता
- भारतीय संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और सरकार के सभी तंत्रों को संविधान द्वारा निर्दिष्ट सीमा के अंदर कार्य करना होता है। कोई भी कानून अथवा आदेश संविधान के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता। भारतीय संविधान की विशेषताओं में यह बहुत महत्वपूर्ण है।
जनता में निहित संप्रभुता
- भारतीय संविधान की संप्रभुता भारत की जनता में निहित है और यह बाहरी नियंत्रण से पूरी तरह से मुक्त है जो अपनी आंतरिक एवं बाहरी नीतियों का निर्धारण एवं नियंत्रण स्वयं ही करता है। इस बात की पुष्टि इस बात से होती है कि भारतीय संविधान की शुरुआत “हम भारत के लोग” से होती है। चूंकि संप्रभु जनता द्वारा संविधान को स्वीकार किया गया है अतः भारत में संविधान सर्वोच्च है।
समाजवादी, पंथनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक मूल्य
- भारतीय संविधान समाजवादी, पंथनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखता है और इसकी प्रस्तावना एवं इसके विभिन्न प्रावधानों के तहत इन तत्वों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
संविधान का परिसंघीय स्वरूप
- भारतीय संविधान का स्वरूप परिसंघीय है अथार्त यह न तो संघीय है और न एकात्मक।
- सामान्य परिस्थितियों में जहां इसका स्वरूप परिसंघीय होता है वहीं विशेष परिस्थितियों में यह एकात्मक स्वरूप का हो जाता है।
- परिसंघीय होने के बाजवूद भारतीय संविधान में एकल नागरिकता,एकीकृत न्यायपालिका, की संकल्पना को स्थान दिया गया है।
शक्ति पृथक्करण एवं संतुलन का सिद्धांत
- भारतीय संविधान द्वारा शासन के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के मध्य कार्यों का बंटवारा करने के साथ उनकी शक्तियों में संतुलन बनाया गया है। इस प्रकार संसदीय सर्वोच्चता अथवा न्यायिक सर्वोच्चता के स्थान पर संवैधानिक सर्वोच्चता को अपनाया गया है।
प्रभुत्व सम्पन्न राज्य
- भारतीय संविधान की विशेषता में यह भी शामिल है कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को एक प्रभुत्व सम्पन्न राज्य घोषित करती है जिसका तात्पर्य यह है कि भारत आंतरिक तथा बाह्य मामलों में स्वतंत्र है।
नागरिक अधिकारों को मान्यता
- भारतीय संविधान की विशेषता में मूल अधिकारों तथा नीति निदेशक तत्वों के तहत नागरिकों के मानवाधिकारों का संरक्षण करने का प्रयास किया गया है।
- भारतीय संविधान ने युक्तियुक्त निर्बंधन की संकल्पना द्वारा व्यक्ति की स्वतंत्रता को तो सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की संकल्पना द्वारा राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना करने की व्यवस्था की है।
- विशेष प्रावधानों के साथ संविधान भाषायी एवं धार्मिक अल्पसंख्यक नागरिकों के साथ साथ महिलाओं, बच्चों, पिछड़े लोगों को भी संरक्षण प्रदान करता है।
समाजवादी राज्य
- हमारा संविधान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी समाजवादी समाज की संरचना के स्वप्न को साकार करता है। संविधान की प्रस्तावना में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का आह्वान किया गया है जो सभी प्रकार के विभेदों को समाप्त कर समता के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है।
- संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से निकाल कर कानूनी अधिकार के रूप में प्रतिस्थापित करना भारत के समाजवादी स्वरूप की पुष्टि करता है।
धर्मनिरपेक्ष राज्य
- सभी धर्मों को समान मान्यता प्रदान की गई है एवं प्रत्येक व्यक्ति को अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है।
संसदीय व्यवस्था
- भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता संसदीय व्यवस्था की स्थापना है जो भारतीय संसद राष्ट्रपति लोकसभा एवं राज्यसभा से मिलकर बनती है।
कल्याणकारी राज्य की स्थापना
- भारतीय संविधान की विशेषता में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें भारत को कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करने की बात कही गयी है।
- भारतीय संविधान के भाग 4 में दिए गए नीति निदेशक तत्व के माध्यम से भारतीय राज्य के लोक कल्याणकारी स्वरूप को दर्शाया गया है।
भारतीय संविधान की सीमाएं
- यह एक जटिल दस्तावेज है जो बिखरा हुआ स्वरूप धारण कर चुका है।
- संविधान में क्लिष्ट शब्दों के उपयोग से यह आम जनमानस को समझ नहीं आती और इस कारण इसे “वकीलो का स्वर्ग” कहा जाता है।
- भारतीय संविधान में केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति हावी है और इसमें एकात्मकता के लक्षण उपस्थित है।
- अधिकांश प्रावधान विदेशों से लिए गए है अतः माना जाता है कि यह भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है
- संविधान निर्माण में सभी नागरिकों का प्रतिनिधित्व नहीं था तथा संविधान सभा के सदस्य सार्वभौतिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुना गया था ।
- अनेक बुनियादी सामाजिक आर्थिक अधिकारों को मूल अधिकारों में शामिल करने के बजाए नीति निदेशक तत्वों में शामिल किया गया जिसके कारण यह न तो वाद योग्य है और न राज्यों के लिए बाध्यकारी।
- लैंगिक समानता से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे जो सामाजिक संरचना विशेषकर परिवार से जुड़े थे उन पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन को कैसे लागू करना है यह आनेवाली सरकारों पर छोड़ा गया तथा संवैधानिक रूप से गैर बाध्यकारी बनाया गया जिसके कारण कई सरकारों नागरिकों के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रही ।