भारतीय संविधान में मूल रूप से मौलिक कर्तव्य का प्रावधान नहीं था। वर्ष 1975 में भारत में लगे आपातकाल तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आरंभ हुए आपातकालीन विरोधी आंदोलन की पृष्ठभूमि में नागरिकों के लिए मूल कर्तव्य की आवश्यकता महसूस की गयी।
मौलिक कर्तव्य एवं स्वर्ण सिंह समिति
1976 में मौलिक कर्तव्यों हेतु सिफारिश करने के लिये सरदार स्वर्ण सिंह की अध्यक्षता में समिति की स्थापना की गई जिसके द्वारा मूल कर्तव्य शीर्षक के तहत संविधान में एक अलग अध्याय को शामिल करने की सिफारिश की गयी ताकि मौलिक अधिकारों का उपयोग करते हुए नागरिकों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया जा सके। उल्लेखनीय है कि मौलिक कर्तव्य केवल नागरिकों पर लागू होते हैं विदेशियों पर नहीं ।
स्वर्ण सिंह समिति द्वारा केवल आठ मौलिक कर्तव्यों की सिफारिश दी जिसमें कर अदायगी तथा मूल कर्तव्यों के अनुपालन न होने की दशा में दंड जैसे प्रावधान भी शमिल थे। सरकार ने समिति की सिफारिशों को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार किया और 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान में एक अलग अनुच्छेद 51A में शामिल किया। इस प्रकार संविधान में 10 मौलिक कर्तव्य शामिल किये गए थे वर्तमान में इनकी संख्या 11 है।
संविधान में उपबंधित मौलिक कर्तव्य
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मूल कर्तव्य की स्थिति
- भारतीय संविधान में शामिल मूल कर्तव्य न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है तथा मूल कर्तव्यों का पालन ना किए जाने पर नागरिकों को दंडित भी नहीं किया जा सकता।
- फिर भी कई अवसरों पर न्यायिक निर्णय देते समय मूल कर्तव्यों के उल्लंघन को साथ में जोड़कर देखा जाता है और कानूनी प्रावधानों के तहत न्यायालय द्वारा वैसे व्यक्ति को न्यायिक संरक्षण देने से इंकार किया जा सकता है जो अपने कर्तव्य के निर्वाह के प्रति सजग नहीं है।
- रंगनाथ मिश्र बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में भी न्यायालय ने केंद्र सरकार को जस्टिस जेएस वर्मा कमेटी की सभी सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करने और उन्हें जल्द से जल्द लागू करने के लिए उचित कदम उठाने को कहा था।
- इसी प्रकार संविधान समीक्षा के लिए गठित राष्ट्रीय आयोग ने भी न्यायमूर्ति वर्मा समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया।
मौलिक कर्तव्यों की समीक्षा हेतु न्यायमूर्ति वर्मा समितिभारत में नागरिकों को मौलिक कर्तव्यों के प्रति जागरुक करने, सिखाने, सभी शैक्षणिक संस्थान में लागू करने योग्य बनाने हेतु एक कार्यप्रणाली के निर्माण हेतु वर्ष 1998 में जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन किया गया था जिसने संविधान के अनुच्छेद 51-A में निम्न को शामिल करने की सिफारिश दी थी।
इसके अलावा कमेटी द्वारा कुछ मौलिक कर्तव्यों के कार्यान्वयन हेतु कानूनी प्रावधानों की भी पहचान की गयी
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मूल कर्तव्य की विशेषताएँ
- मूल कर्तव्यों के तहत नैतिक और नागरिक दोनों ही प्रकार के कर्तव्य शामिल किये गए हैं। जैसे स्वतंत्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों का पालन करना जहां एक नैतिक कर्तव्य है वहीं संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करना नागरिक कर्तव्य है।
- मूल कर्तव्य केवल भारतीय नागरिकों पर ही लागू होते हैं। इस प्रकार यह नागरिकों का अपने राष्ट्र के प्रति दायित्वों को बताता है।
- मौलिक कर्तव्य गैर-न्यायोचित हैं अर्थात् इनके उल्लंघन में सरकार द्वारा कोई कानूनी प्रतिबंध लागू नहीं किया जा सकता।
- मौलिक कर्तव्य प्राचनी भारतीय संस्कृति, परंपराओं, पौराणिक कथाओं, धर्म एवं आदर्शों से जुड़ा हुआ है।
मूल कर्तव्य का महत्त्व
- मूल कर्तव्य नागरिकों के लिये सचेतक का कार्य करते हैं।
- प्रत्येक जिम्मेवार नागरिकों को अपने देश और अन्य नागरिकों के प्रति उनके कर्तव्यों के बारे में जानकारी होनी चाहिये।
- अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों का समावेश एक जिम्मेवार एवं अनुशासित नागरिक बनाने में सहायक होता है।
- मूल कर्तव्य असामाजिक गतिविधियों जैसे झंडा जलाना, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान, हिंसा आदि के विरुद्ध लोगों के लिये एक चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं।
- कई देशों जैसे अमेरिका, सिंगापुर आदि ने ‘जिम्मेदार नागरिकता’ के सिद्धांतों को अपना कर स्वयं को विकसित अर्थव्यवस्थाओं में बदलने का कार्य किया है।
आलोचना
- मूल कर्तव्यों को कानून द्वारा लागू नहीं किया जा सकता और इसलिये कई आलोचक के अनुसार संविधान में इसके होने का कोई विशेष महत्त्व नहीं है।
- कइ मूल कर्तव्यों की भाषा अस्पष्ट, जटिल है कुछ शब्द जैसे समग्र संस्कृति और महान आदर्श आदि शब्दों को आम आदमी द्वारा समझा जाना मुश्किल हो सकता है।
- यह नागरिकों के कर्तव्यों की संपूर्ण सूची नहीं माना जाती क्योंकि कई अन्य महत्वपूर्ण कर्तव्यों जैसे वोट डालना, कर भुगतान, परिवार नियोजन जैसे प्रावधानों को शमिल नहींकिया गया है। उल्लेखनीय है कि कर भुगतान करने की सिफारिश स्वर्ण सिंह समिति द्वारा की गई थी।
- आलोचकों के अनुसार संविधान के भाग IV में उपाधि के रूप में मूल कर्तव्यों का समावेश किए जाने के कारण मूल कर्तव्यों का महत्व हो जाता है। इसे भाग III के बाद जोड़ा जाना चाहिए था ताकि उन्हें मौलिक अधिकारों के बराबर रखा जा सके।
मूल अधिकार एवं मूल कर्तव्य
विशेषाधिकार और दायित्व के मध्य संतुलन
- मौलिक कर्तव्य और मौलिक अधिकार एक दूसरे के पूरक हैं। कर्तव्य समाज के प्रति दायित्व और एक व्यक्ति के विशेषाधिकारों के बीच सही संतुलन स्थापित करता है।
- मौलिक कर्तव्य राष्ट्रविरोधी, असामाजिक गतिविधियों जैसे राष्ट्रीय ध्वज को जलाने, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने आदि के खिलाफ एक चेतावनी के रूप में कार्य करते हुए उसके अधिकारों एवं कर्तव्य के बीच संतुलन बनाता है।
लोकतांत्रिक संतुलन
- मौलिक कर्तव्यों में निहित तत्व लोकतांत्रिक संतुलन स्थापित कर लोगों को उनके कर्तव्यों के प्रति ठीक उसी प्रकार जागरूक बनाता है जैसे मूल अधिकार उनको अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाता हैं।
अधिकारों का सम्मान
- एक अधिकार दूसरों के अधिकारों के प्रति सम्मान दिखाने के दायित्व के साथ यानी कर्तव्य के रूप में आता है जैसे यदि हम किसी सार्वजनिक सुविधा का लाभ उठाते हैं तो यह हमारा कर्तव्य है कि दूसरों को भी इसका लाभ उठाने दें।
अधिकार एवं कर्तव्यों का घनिष्ठ संबंध
- कोई कानूनी व्यवस्था जहां अपने नागरिक को जीवन का अधिकार देती है वही उस पर यह दायित्व भी डालती है कि वह अपने जीवन को संकट में न डाले, साथ ही दूसरों के जीवन और सुविधा का सम्मान करे। इस प्रकार एक मजबूत कानूनी व्यवस्था में मौलिक अधिकार और कर्तव्य कानून के दो अभिन्न अंग के रूप में उपस्थित रहते हैं।
मूल कर्तव्यों की प्रासंगिकता
मूल कर्तव्यों को संविधान में शामिल किये जाने के लगभग 45 वर्ष बाद भी नागरिकों में इसके संबंध में पर्याप्त जागरूकता की कमी देखी जाती है। अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी होना जरूरी है लेकिन हालिया कई ऐसी घटनाएं घटी है जिसमें भाईचारे की भावना को कायम रखने, महिलाओं के सम्मान, बच्चों की सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण जैसे मामलों में हम असमर्थ रहे हैं।
- किसान आंदोलन में शामिल कुछ प्रदर्शनकारियों द्वारा लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराना तथा उपद्रव फैलाना इत्यादि जैसी घटनाएं।
- सोसल मीडिया पर सामजिक सौहार्द बिगाड़ने, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों, साम्प्रदायिक पोस्ट, सूचना साझा करने की घटनाएं।
- विकास के नाम पर होनेवाले अंघाधुंध पर्यावरणीय क्षति, जैव विविधता की हानि के द्वारा हम अपने मौलिक कर्तव्यों का उल्लंघन कर रहे हैं।
- प्रदूषण की भयावह स्थिति और स्वास्थ्य की दृष्टि से दीपावली पर पटाखों पर रोक के निर्देश जारी हुए जिसकी अवहेलना हुई।
- किसानों द्वारा खेतों में ही पराली जलाने के क्रम में अपने क्षेत्र के स्वस्थ पर्यावरण को स्वस्थ रखने के नागरिक कर्तव्य नहीं निभाते।
- कोराना काल जैसे राष्ट्रीय संकट में देश को बीमारी से बचाने के बजाए दवाइयों की कालाबजारी, कम होती मानवीय संवेदनाए, आपसी सहयोग की कमी, अवैज्ञानिक तर्कों तथा जानकरियों को बढ़ावा देना प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से मूल कर्तव्यों के प्रति हमारी दिशाहीनता को दर्शाता है।
- कोरोना काल में मास्क लगाने और सामजिक दूरी बनाने के राष्ट्रीय हित में आदेश का पालन करने में कई बार नागरिकों द्वारा जाने अंजाने अवहेलना की गयी। हांलाकि लॉकडाउन समय लोगों में इसका पालन करते देखा गया लेकिन सामान्य रूप में बचाव तथा सुरक्षा हेतु नियमों की अनदेखी नागरिक कर्तव्य की अवहेलना को दर्शाता है।
- अधिकार लोगों के बीच अंत:क्रिया के वैसे नियम हैं जिसके माध्यम से राज्य, व्यक्तियों और समूहों के कार्यों पर दायित्व और प्रतिबंध आरोपित होता है। अधिकार स्वयं के विकास के लिए आवश्यक हैं जिन्हें समाज या राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त होता है जबकि कर्तव्य वे कार्य हैं जो हमें दूसरों के लिए करना चाहिए। इस प्रकार अधिकार कई संदर्भों में कर्तव्यों से जुड़ा होता है और एक अधिकार दूसरों के अधिकारों के प्रति सम्मान दिखाने के दायित्व के साथ आता है।
निष्कर्ष
जब तक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के प्रयोग के साथ-साथ मौलिक कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करेंगे तब तक भारत में लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत नहीं किया जा सकता। गांधी जी के अनुसार कर्तव्य ही अधिकारों का स्रोत है यदि आप अपने कर्तव्य का पालन करते हैं तो अधिकार हेतु कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायालय में गैर-प्रवर्तनीय होने के बावजूद भी मौलिक कर्तव्य की अवधारणा भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्रों के लिये महत्त्वपूर्ण है। उल्लेखनीय है कि अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों का समावेश एक अनुशासित एवं जिम्मेवार नागरिक हेतु आवश्यक है। अतः भारत की प्रगति के लिये मौलिक कर्तव्यों के निर्वहन की आवश्यकता पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।