राजनीति का अपराधीकरण क्या है?
वह स्थिति जब प्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक व्यवस्था में अपराधियों का प्रभाव बढ़ जाता है तो वह राजनीति का अपराधीकरण कहलाता है। राजनीति में अपराधियों का प्रवेश लोकतंत्र हेतु अत्यंत घातक स्थिति होती है क्योंकि इस स्थिति में राजनीति में ईमानदार, चरित्रवान, तथा निस्वार्थ सेवा वाले लोगों का प्रवेश बाधित होता है।
भारतीय राजनीति में 80 के दशक में राजनीति में अपराधियों का प्रभाव बढ़ता है जो वर्तमान में भी जारी है। यह भारतीय राजनीति की एक विशेषता कही जा सकती है कि चुनाव में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की जीतने की संभावना ज्यादा होती है।
एसोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफार्म की रिपोर्ट
ADR की एक रिपोर्ट के अनुसार चुनाव में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की जीत की संभावना 13% जबकि स्वच्छ छवि के उम्मीदवार की जीत संभावना केवल 5% होती है। भारत में उम्मीदवार के अपराधी होने से मतदाताओं के मतदान आचरण पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। इसके अलावा मतदान आचरण में अधिकांश मतदाताओं द्वारा उम्मीदवार के बजाए दल को प्राथमिकता दिया जाता है।
एसोसिएशन फोर डेमोक्रेटिक रिफार्म के अनुसार 2019 के लोकसभा के लिये चुने गए करीब आधे सांसदों पर आपराधिक आरोप हैं। 2014 के मुकाबले इसमें 26% की बढ़ोतरी हुई है। आंकड़ो के अनुसार चुनाव जीतकर आए 539 सांसदों में करीब 233 सांसदों पर आपराधिक आरोप हैं।उल्लेखनीय है कि 2009 में लगभग 30% तथा 2014 में 34% सांसदों के खिलाफ आपराधिक आरोप थे जबकि 2019 में 43% नवनिर्वाचित सांसदों का रिकॉर्ड आपराधिक पृष्ठभमि से है। |
उल्लेखनीय है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 केवल दोषी राजनेताओं पर प्रतिबंध लगाती है, ट्रायल का सामने करनेवाले व्यक्ति चुनाव लड़ सकते हैं। इस कारण भारत की राजनीति में अपराधिक मामले वाले सांसदों विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है क्योंकि वे चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि बन जाते हैं और इस प्रकार उनके अपराधिक प्रकरण का निर्णय नहीं हो पाता है और न्यायिक प्रक्रिया लंबी चलती है।
राजनीति के अपराधीकरण के अन्य कारण
- चुनाव प्रक्रिया में व्याप्त दोष।
- न्याय व्यवस्था में विलंब तथा उदासीनता।
- राजनीति में नैतिक मूल्यों का पतन होना।
- मतदाताओं में राजनीतिक जागरूकता का अभाव।
- राजनीतिक सुधार के प्रति विधायिका की उदासीनता।
- गरीबी, अशिक्षा तथा बेरोजगारी।
- राजनेता एवं अपराधियों का गठजोड़।
- राजनीतिक दलों की सत्ता के प्रति बढ़ता मोह।
- उम्मीदवार के अपराधी होने से मतदाताओं के मतदान आचरण पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।
- मतदान आचरण में अधिकांश मतदाताओं द्वारा उम्मीदवार के बजाए दल को प्राथमिकता देना।
- चुनाव में अनैतिक तथा अवैधानिक व्यवहारों का बढ़ता प्रभाव।
- ईमानदार तथा साफ छवि के लोगों की राजनीति के प्रति अनिच्छा।
- चुनाव प्रक्रिया में बढ़ता खर्च।
- राजनीतिक दलों द्वारा अपराधिक छवि वाले व्यक्तियों को टिकट देना।
राजनीति में अपराधीकरण रोकने हेतु प्रयास
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय पर अनेक निर्देश दिए गए ताकि राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को रोका जा सके । इसके अलावा समय-समय पर आवश्यकता के अनुसार गठित विभिन्न आयोगों तथा समितियों ने भी अपनी सिफारिश दी लेकिन राजनीतिक दलों की उदासीनता तथा इच्छाशक्ति की कमी के कारण अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कानून नहीं बन पाया है। जन-प्रतिनिधियों के खिलाफ मामलों के त्वरित निपटारे हेतु 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फास्ट ट्रेक अदालतों के गठन का आदेश दिया गया जिसके द्वारा केवल 11% मामलों में ही निर्णय आए।
इसके अलावा संथानम समिति 1962, वोहरा समिति 1993 ने राजनीति में अपराधियों पर अंकुश हेतु अनेक सुझाव दिए जिस पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया। वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि सभी अधीनस्थ न्यायालय 1 वर्ष के भीतर विधायकों से संबंधित मामलों पर निर्णय दे एवं ऐसा न करने पर उत्तरदायी कारण बताए।
राजनीति के अपराधीकरण का प्रभाव
- स्वस्थ लोकतांत्रिक परंपरा तथा व्यवस्था में दोष आना।
- न्याय के सिद्धांत का बाधित होना।
- संसाधनों की अंधाधुंध लूट तथा शोषण को बढ़ावा।
- राजनीतिक अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार तथा कालेधन में वृद्धि।
- संवैधानिक आदर्शों, सामाजिक न्याय, एकता में बाधा।
- संसद की कार्य क्षमता में कमी, कानून निर्माण प्रक्रिया में बाधा।
- कानून निमार्ण में देशहित के बजाय स्वहित को प्राथमिकता।
- अपराध, जंगलराज, अराजकता की स्थिति में वृद्धि।
- लोकतंत्र, लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा न्यायिक व्यवस्था के प्रति लोगों के विश्वास में कमी।
राजनीति के अपराधीकरण के रोक हेतु सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश
- अपराधियों को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश।
- प्रत्येक प्रत्याशी चुनाव आयोग को अपने खिलाफ लंबित मामलों के बारे में स्पष्ट लिखित में जानकारी देगा।
- प्रत्याशी द्वारा अपने ऊपर चल रहे आपराधिक मामलों की जानकारी अपनी पार्टी को दी जाए।
- राजनीतिक दल अपने प्रत्याशियों के आपराधिक मामलों की जानकारी अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराएं।
- प्रत्याशी और पार्टियाँ स्थानीय मीडिया में लंबित आपराधिक मामलों का पूरा विवरण उपलब्ध कराएँ।
- चुनाव आयोग अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुए मतदाताओं को प्रत्याशियों के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराए।
राजनीतिक के अपराधीकरण के रोक हेतु सुझाव
- चुनाव प्रणाली में व्याप्त दोषों को दूर करने हुए और प्रभावी बनाया जाए।
- विधि आयोग, संथानम समित, वोहरा समिति के सुझावों को लागू किया जाना चाहिए।
- न्यायिक क्रियाशीलता को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- शपथ पत्र में गलत जानकारी देने पर कठोर कार्यवाही की व्यवस्था की जाए।
- भ्रष्टाचार रोकने हेतु लोकपाल को और सशक्त किया जाना चाहिए।
- जनसामान्य में जागरूकता बढ़ाने हेतु प्रिंट एवं सोशल मीडिया, के माध्यम से प्रचार।
- अपराधियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएं।
- अपराधी पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों की जानकारी राजनीतिक दल के वेवसाइट पर सार्वजनिककिया जाए।
- अपराधियों के राजनीति में प्रवेश रोकने हेतु संसद द्वारा कानून बनाए जाए।
- राजनीतिक दलों में सूचना का अधिकार,वित्तीय पारदर्शिता लाने हेतु उपाए किए जाए।
राजनीति में अपराधियों का प्रवेश लोकतंत्र हेतु घातक है तथा इसे रोकने हेतु एक प्रभावी कानून की आवश्यकता है और इस दिशा में संसद को ही पहल करनी होगी।