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भारत का ऊर्जा क्षेत्र

भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्‍यवस्‍था हेतु भारत का ऊर्जा क्षेत्र में आत्‍मनिर्भरता होना आवश्‍यक है । उल्‍लेखनीय है कि ऊर्जा किसी भी देश के विकास का इंजन होती है तथा यह प्रतिव्‍यक्ति होनेवाली ऊर्जा का उपभोग उस देश के जीवन स्‍तर का सूचक होता है ।

2022 में वित्‍त मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार विश्‍व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमानों के आधार पर भारत 2021-24 तक विश्‍व की प्रमुख तीव्रगामी अर्थव्‍यवस्‍था बना रहेगा । सितम्‍बर 2022 ब्‍लूमबर्ग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में पांचवे स्‍थान पर है ।

भारत का ऊर्जा क्षेत्र परिदृश्‍य

सभी के लिए ऊर्जा संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 7 (SDG-7) में शमिल है। इसी परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार द्वारा ‘सभी के लिये विद्युत’ (Power For All ) नीति की घोषणा की गयी जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक देश के प्रत्येक व्यक्ति तक सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुँच प्रदान करना है।

पिछले कुछ वर्षों में भारत में नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा की मात्रा में वृद्धि हुई है फिर भी अभी भी भारत का ऊर्जा क्षेत्र में ऊर्जा का प्रमुख साधन कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन ही हैं।

इंडिया एनर्जी आउटलुक 2021- महत्वपूर्ण तथ्य

मद प्रमुख तथ्य
2030 तक तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता अगले दो दशकों में भारत की ऊर्जा मांग में 25% की वृद्धि होगी ।

वर्ष 2030 तक भारत यूरोपीय संघ को पीछे कर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश बन जाएगा ।

कोयले वर्तमान भारत में कोयले द्वारा अधिक ऊर्जा उत्पादन होता है तथा भारत में कोयले की मांग वर्ष 2030 तक लगभग 30% बढ़ने का अनुमान है।
तेल भारत में तेल की बढ़ती मांग के कारण वर्ष 2019 की तुलना में 2030 तक तेल आयात बिल दोगुना और 2040 तक तिगुना हो सकता है ।

मौजूदा नीतिगत परिदृश्य में वर्ष 2040 तक भारत की तेल मांग 74%  तक बढ़ सकती है ।

प्राकृतिक गैस भारत में प्राकृतिक गैस आयात निर्भरता वर्ष 2019 के 50% से बढ़कर 2040 तक 60% से अधिक हो जाएगी।

भारत का ऊर्जा क्षेत्र- विशेषताएं

  • बिजली की मांग के अनुसार आपूर्ति न होने से बिजली की कमी।
  • तीव्र औद्योगिकरण, नगरीकरण तथा आर्थिक विकास से ऊर्जा की मांग में सतत वृद्धि ।
  • ऊर्जा हेतु मुख्य रूप से जीवाश्म ईधनों पर निर्भरता।
  • तेल एवं गैस की सीमित उपलब्धता ।
  • ऊर्जा के बड़े भाग की पूर्ति हेतु आयात पर निर्भरता।
  • व्यापक संभावनाओं के बावजूद वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का विकास अपेक्षाकृत बहुत कम होना।
  • नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम लक्ष्य से पीछे होना।

संस्थापित उत्पादन क्षमता 31.01.2022 की स्थिति

श्रेणी  % कुल हिस्सा
जीवाश्म ईधन
 कोयला 51.7%
 लिग्नाइट 1.7%
 गैस 6.4%
 तेल 0.1%
कुल जीवाश्म ईधन 59.7 %
गैर जीवाश्म ईधन
आरईएस (जल सहित) 38.6 %
जल 11.8%
पवन, सौर और अन्य नवीकरणीय 26.7%
पवन 10.2 %
सौर 12.5 %
बायोमास विद्युत् /सह उत्पादन 2.6 %
वेस्ट एनर्जी 0.1 %
लघु जल विद्युत् 1.2 %
न्यूक्लियर 1.7%
कुल गैर जीवाश्म ईधन 40.3%
कुल संस्थापित क्षमता 100%

राष्ट्रीय ऊर्जा नीति-  उद्देश्य

  • गरीबों तथा वंचितों को सस्ती ऊर्जा विद्युत उपलब्ध कराना।
  • ऊर्जा आयात के मद में कमी लाना।
  • ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना।
  • जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों से निपटना।
  • ऊर्जा ग्रहण क्षेत्रों के अनुरूप आर्थिक विकास को गति देना।

राष्ट्रीय ऊर्जा नीति- आवश्यकता

  • 2022 तक 24×7 सतत रूप से बिजली की आपूर्ति।
  • GDP  में विनिर्माण  क्षेत्र  की हिस्सेदारी  बढ़ाने हेतु।
  • पेट्रोलियम आयात में कमी लाना।
  • जलवायु परिवर्तन लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु।
  • भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बिजली उत्पादन

ऊर्जा क्षेत्र में उभरती नवीन प्रवृतियां

  • ऊर्जा उत्पादन में जीवाश्म ईंधन की भागीदारी में कमी लाना।
  • वर्ष 2022 तक अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 175 गीगावाट करने का लक्ष्य।
  • कृषि पंप सेटों का सौर्य ऊर्जा प्रयोग।
  • रेलवे क्षेत्र का 100% विद्युतीकरण।
  • ऊर्जा क्षेत्र में नए प्रयोग तथा नवचार से ऊर्जा उत्पादन लागत में कमी ।
  • ऊर्जा उत्पादन में जलवायु परिवर्तनको प्राथमिकता देना।
  • स्वच्छ ऊर्जा प्रोत्साहन हेतु निवेश, शोध, नवचार, ग्रीन ब्रांड ।
  • बढ़ते प्रदूषण से लोगों में ऊर्जाके प्रति जागरूकता।
  • कार्बन क्रेडिट की अवधारणा को बढ़ावा।
  • ऊर्जा दक्ष उपकरणों के प्रयोगका बढ़ता प्रचलन ।
  • सार्वजनिक परिवहन, यातायात में ऊर्जा क्षेत्र में आवश्यक बदलाव।
  • ऊर्जा के नए स्रोत की खोज से परंपरागत ऊर्जा मूल्य में कमी।

भारत का ऊर्जा क्षेत्र एवं ऊर्जा संकट

जब देश में उपलब्ध स्रोतों से ऊर्जा की मांग पूरी नहीं हो पाती तो यह स्थिति ऊर्जा संकट कहलाती है अथार्त् मांग की तुलना में आपूर्ति में कमी होना। वैशविक स्तर पर ऊर्जा का एक प्रमुख उत्पादक होने के बावजूद भारत ऊर्जा आवश्यकताओं हेतु आयात पर निर्भर है। विश्व बाजार में ऊर्जा के मूल्य में उतार चढ़ाव से भारत का आर्थिक विकास भी प्रभावित होता है।

ऊर्जा संकट का कारण

  • जीवाश्म ईंधन की अपर्याप्त उपलब्धता तथा असमान वितरण ।
  • भारत की ऊर्जा आपूर्ति का अधिकांश भाग की कोयले पर निर्भरता।
  • गैरपरम्परागत उर्जा स्रोतों में नवीन प्रौद्योगिकी एवं नवचार की कमी।
  • आर्थिक विकास तथा तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था में ऊर्जा खतप में वृद्धि ।
  • बिजली का वितरण एवं पारेषण व्यवस्था में दोष।
  • बिजली वितरण कंपनियों में व्याप्त घाटा जो 2019-20 में डिस्कॉम का कुल ऋण 3.84 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया।

समाधान हेतु उपाए

  • आंतरिक ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि की जाए।
  • वितरण व्यवस्था में सुधार लाया जाए।
  • उच्च तकनीक एवं नवचार से ऊर्जा खपत में मितव्ययिता लाना।
  • संचित ऊर्जा भंडार की खोज हेतु प्रयास।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों परमाणु ऊर्जा, सौर ऊर्जा, जलविद्युत का विकास।

ऊर्जा दक्षता क्‍या है?

ऊर्जा दक्षता का तात्पर्य है किसी कार्य को करने हेतु न्यूनतम ऊर्जा का उपयोग कर ऊर्जा की बर्बादी को रोकना जो अनेक तरह के लाभ प्रदान करती है जिसे निम्‍न  प्रकार से समझा जा सकता है:-

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना ।
  • ऊर्जा आयात की मांग को कम करना ।
  • उत्पादन एवं कार्यलागत को कम करना।
  • पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को बढ़ावा देना।

उपरोक्‍त उपाए ऊर्जा दक्षता की दिशा में बहुत ही कारगर है तथा इन उपायों के सफल कार्यान्वयन से वर्ष 2017-18 के दौरान देश की कुल बिजली खपत में 7.14% की बिजली बचत और 108  मिलियन टन तक CO2 के उत्सर्जन में कमी आयी। भारत ऊर्जा दक्षता नीतियों के कार्यान्वयन के साथ वर्ष 2040 तक बिजली उत्पादन हेतु 300 गीगावाट के नए निर्माण से बच सकता है।

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